मानव जाति के विकास के सुदीर्घ इतिहास में सर्वाधिक महत्व सम्प्रेषण के माध्यम का रहा है और वह माध्यम है भाषा। मनुष्य समाज की इकाई होता है तथा मनुष्यों से ही समाज बनता है। समाज की इकाई होने के कारण परस्पर विचार, भावना, संदेश, सूचना आदि को अभिव्यक्त करने के लिए मनुष्य भाषा का ही प्रयोग करता है। यह भाषा चाहे संकेत भाषा हो अथवा व्यवस्थित ध्वनियों, शब्दों या वाक्यों में प्रयुक्त कोई मानक भाषा हो।भाषा किसे कहते हैं? भाषा के माध्यम से ही हम अपने भाव एवं विचार दूसरे व्यक्ति तक पहॅुचाते हैं तथा दूसरे व्यक्ति के भाव एवं विचार जान पाते हैं।
भाषा की परिभाषा
भाषा ही वह साधन है जिससे हम अपना इतिहास, संस्कृति, संचित ज्ञान-विज्ञान तथा अपनी महान पंरपराओं को जान पाते है। किसी सभ्य समाज का आधार उसकी विकसित भाषा को ही माना जाता है।
भाषा किसे कहते हैं: प्रकार
भाषा के दो प्रकार होते हैं, पहला मौखिक व दूसरा लिखित। मौखिक भाषा आपस में बातचीत के द्वारा, भाषणों तथा उद्बोधनों के द्वारा प्रयोग में लाई जाती है। लिखित भाषा लिपि के माध्यम से लिखकर प्रयोग में लाई जाती है। यद्यपि भाषा भौतिक जीवन के पदार्थो तथा मनुष्य के व्यवहार व चिन्तन की अभिव्यक्ति के साधन के रूप में विकसित हुई है, जो हमेशा एक सी नहीं रहती अपितु उसमें दूसरी बोलियॉ-भाषाओं से, संपर्क भाषाओं से शब्दों का आदान प्रदान होता रहता है। जीवन के प्रति रागात्मक संबंध भाषा के माध्यम से ही उत्पन्न होता है।
हिंदी खड़ी बोली ने अपने शब्द-भण्डार का विकास दूसरी जनपदीय बोलियों, संस्कृत तथा अन्य समकालीन विदेशी भाषाओं के शब्द भण्डार के मिश्रण से किया है किंतु हिंदी के व्याकरण के विविध रूप अपने ही रहे हैं। हिंदी में अरबी-फारसी, अंग्रजी आदि विदेशी भाषाओं के शब्द भी प्रयोग के आधार पर व्यवहार के आधार पर आकर समाहित हो गए है।
भाषा स्थायी नहीं होती उसमें दूसरी भाषा के लोगों के संपर्क में आने से परिवर्तन होते रहते हैं। भाषा में यह परिवर्तन धीरे-धीरे होता है और इस परिवर्तनों के कारण नई-नई भाषाएँ बनती रहती हैं। इसी कारण संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंष आदि के क्रम में ही आज की हिंदी तथा राजस्थानी, पंजाबी, सिन्धी, बंगला, उड़िया, असमिया, मराठी आदि अनेक भाषाओं का विकास हुआ है।
भाषा किसे कहते हैं और उसके भेद
जब हम आपस में बातचीत करते हैं तो मौखिक भाषा का प्रयोग करते हैं तथा पत्र लेख, पुस्तक, समाचार पर आदि में लिखित भाषा का प्रयोग करते है। विचारों का संग्रह भी हम लिखित भाषा में ही करते हैं।
1.मौखिक किसे कहते हैं
मूलतः सामान्य जन-जीवन के बीच बातचीत में मौखिक भाषा का ही प्रयोग है, इसे प्रयत्नपूर्वक सीखने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि जन्म के बाद बालक द्वारा परिवार व समाज के संपर्क तथा परस्पर सम्प्रेषण-व्यवहार के कारण स्वभाविक रूप से ही मौखिक भाषा सीखी जाती है।
2.लिखित भाषा किसे कहते हैं
लिखित भाषा की वर्तनी और उसी के अनुरूप उच्चारण प्रयत्नपूर्वक सीखना पड़ता है। मौखिक भाषा की ध्वनियों के लिए स्वतन्त्र लिपि-चिन्हों के द्वारा ही भाषा का निर्माण होता है।
भाषा और बोली
एक सीमित क्षेत्र में बोले जाने वाले भाषा के स्थानीय रूप को बोली कहा जाता है जिसे उप भाषा भी कहते है। कहा गया है कि ’कोस-कोस पर पानी बदले, पॉच कोस पर बानी’। हर पॉच-सात मील पर बोली में बदलाव आ जाता है।
भाषा का सीमित, अविकसित तथा आम बोलचाल वाला रूप बोली कहलाता है जिसमें साहित्य रचना नहीं होती तथा जिसका व्याकरण नहीं होता व शब्दकोष भी नहीं होता, जबकि भाषा विस्तृत क्षेत्र में बोली जाती है, उसका व्याकारण तथा शब्दकोष होता है तथा उसमें साहित्य लिखा जाता है। किसी बोली का संरक्षण तथा अन्य कारणों से यदि क्षेत्र विस्तृत होने लगता है तथा उसमें साहित्य लिखा जाने लगता है तो वह भाषा बनने लगती है तथा उसका व्याकरण निष्चित होने लगता है।
हिंदी भाषा की बोलियॉ
हिंदी केवल खड़ी बोली (मानक भाषा) का ही विकसित रूप नहीं है बल्कि जिसमें अन्य बोलियॉ भी समाहित हैं जिनमें खड़ी बोली भी शामिल है। ये निम्न प्रकार हैं
1.पूर्वी हिंदी जिसमें अवधी, बघेली तथा छत्तीसगढ़ी शामिल हैं।
2. पश्चिमी हिंदी में खड़ी बोल, ब्रज, बॉगरू(हरियाणवी), बुन्देली तथा कन्नौजी शामिल हैं।
3.बिहारी की प्रमुख बोलियॉ मगही, मैथिली तथा भोजपुरी हैं।
4.राजस्थानी की मेवाड़ी, मारवाड़ी, मेवाती तथा हाड़ौती बोलियॉ शामिल हैं कुछ विद्वान मालवी, ढुंढाडी तथा बागडी को भी राजस्थानी की अलग बोलियॉ हिंदी की बोलियॉ है।
5.पहाड़ी की गढ़वाली, कुमांउनी तथा मंडियाली बोलियॉ हिंदी की बोलियॉ है।
इन बोलियॉ के मेल से बनी हिंदी को संविधान सभा ने 14 सितम्बर, 1949 को भारत की राजभाषा स्वाकार किया। विभिन्न बोलियों के मेल से बनी हिंदी की भाषाई विविधता के कारण ही हिंदी के क्षेत्रीय उच्चारण में विविधता पाई जाती है।
हिंदी भाषा और हिंदी व्याकरण
हिंदी व्याकरण हिंदी भाषा को शुद्ध रूप से लिखने और बोलने संबंधी नियमों की जानकारी देनेवाला शास्त्र है। किसी भी भाषा को जानने के लिए उसके व्याकरण को भी जानना बहुत आवश्यक होता है। हिंदी की विभिन्न ध्वनि, वर्ण, पद, पदांष, शब्द, शब्दांष, आदि की विवेचना तथा उसके विभिन्न घटकों-प्रकारों का वर्णन हिंदी व्याकरण में किया जाता है। हिंदी व्याकरण को मोटे तैर पर वर्ण-विचार, शब्द-विचार आदि तीन वर्गों में विभाजित कर इनके विभिन्न पक्षों पर विचार किया जाता है।
भाषा और नागरी लिपि का परिचय एवं वर्तनी
भाषा की ध्वनियों को जिन लेखन चिह्नों में लिखा जाता है उसे लिपि कहते हैं, अर्थात् किसी भी भाषा की मौखिक ध्वनियों को लिखकर व्यक्त करने के लिए जिन वर्तनी चिह्नों का प्रयोग किया जाता है वह लिपि कहलाती है। संस्कृत, हिंदी, मराठी, कोंकणी(गोवा), नेपाली आदि भाषाओं की लिपि ’देवनागरी’ है। इसी प्रकार अंग्रेजी को ’रोमन’, पंजाबी की ’गुरूमुखी’ तथा उर्दू की लिपि फारसी है। भारत सरकार के अधीन केंद्रीय हिंदी निदेषालय ने अनेक भाषाविदों,पत्रकारों, हिंदी सेवा संस्थानों तथा विभिन्न मंत्रालयों के प्रतिनिधियों के सहयोग से हिंदी की वर्तनी का देवनागरी में एक मानक स्वरूप तैयार किया है जा सभी हिंदी प्रयोक्ताओं के लिए समान रूप से मान्य है।
भाषा किसे कहते हैं FAQ
लिखित भाषा किसे कहते हैं
लिखित भाषा लिपि के माध्यम से लिखकर प्रयोग में लाई जाती है। लिखित भाषा की वर्तनी और उसी के अनुरूप उच्चारण प्रयत्नपूर्वक सीखना पड़ता है। मौखिक भाषा की ध्वनियों के लिए स्वतन्त्र लिपि-चिन्हों के द्वारा ही भाषा का निर्माण होता है।
मौखिक भाषा किसे कहते हैं
मौखिक भाषा आपस में बातचीत के द्वारा, भाषणों तथा उद्बोधनों के द्वारा प्रयोग में लाई जाती है। मूलतः सामान्य जन-जीवन के बीच बातचीत में मौखिक भाषा का ही प्रयोग है, इसे प्रयत्नपूर्वक सीखने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि जन्म के बाद बालक द्वारा परिवार व समाज के संपर्क तथा परस्पर सम्प्रेषण-व्यवहार के कारण स्वभाविक रूप से ही मौखिक भाषा सीखी जाती है।
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