पृथ्वी का 2/3 भाग जल से घिरा है, जोकि सागरों एवं महासागरों द्वारा प्राप्त होता है। जल जीवन का भौतिक आधार है। जलीय पारितन्त्रों में सर्वाधिक जैव विविधता पाई जाती है। जब भी वाहित मल, विषैले रसायन, गाद आदि जैसे हानिकर पदार्थ जल में मिल जाते हैं तो जल प्रदूषण हो जाता है। जल को प्रदूषित करने वाले पदार्थों को जल प्रदूषक कहते हैं। जल तीन रूप में पाया जाता है
- ठोस- बर्फ, हिमपात, ओलावृष्टि, ग्लेशियर, आदि।
- तरल- सागरों, नदियों, झीलों, भूगर्भ, आदि।
- गैस- वायुमण्डल में जलवाष्प।
जल प्रदूषण क्या है
मुख्यतया कारखानों के अपषिष्ट, वाहित मल (Sewage) तथा अपषिष्ट पदार्थ जलीय प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। फॉस्फेट तथा नाइट्रोजन की अधिक मात्रा के कारण शैवालों की अत्यधिक वृद्धि से जल प्रस्फुटन (Water bloom) हो जाता है। शैवालों द्वारा विषैले पदार्थो के सा्रवण तथा अधिकता के कारण उपलब्ध ऑक्सीजन की कमी से जलीय जीवों की मृत्यु हो जाती है। जलाशय में अधिक कार्बनिक पदार्थों की उपस्थिति को सुपोषण कहते हैं, जिसके कारण भी जल में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा जैविक/जैव रासायनिक ऑक्सीजन मॉग कहलाती है। जल प्रदूषण के लिए डैफिनया, ट्राउट तथा कुछ मछलियॉ संवेदनशील होती है और प्रदूषण की तीव्रता को दर्शाती है।
जल प्रदूषण के कारण
गंगा भारत की प्रसिद्ध नदियों में से एक है । यह अधिकांश उत्तरी, केन्द्रीय तथा पूर्वी भारतीय जनसंख्या का पोषण करती है। करोड़ों व्यक्ति अपनी दैनिक आवश्यकताओं और जीविका के लिए इस पर निर्भर हैं। परन्तु, हाल ही में प्रकृति के लिए विश्वव्यापी कोष (WWF) द्वारा किए गए अध्ययन में यह पाया गया कि गंगा संसार की दस ऐसी नदियों में से एक है जिनका अस्तित्व खतरे में है।
इसके प्रदूषण स्तर में कई वर्षों से निरन्तर वृद्धि हो रही है। इतने प्रदूषण स्तर तक पहुँचने का कारण यह है कि जिन शहरों एवं बस्तियों से होकर यह नदी प्रवाहित हो रही है वहाँ के निवासी अत्यधिक मात्रा में कूड़ा – करकट, अनुपचारित वाहित मल, मृत जीव तथा अन्य बहुत से हानिकारक पदार्थ सीधे ही इस नदी में फेंक रहे हैं। वास्तव में, कई स्थानों पर प्रदूषण स्तर इतना अधिक है कि इसके जल में जलजीव जीवित नहीं रह पाते, वहाँ यह नदी ‘निर्जीव’ हो गयी है ।
1985 में इस नदी को बचाने के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना आरम्भ की गयी जिसे गंगा कार्य परियोजना कहते हैं । परन्तु बढ़ती जनसंख्या तथा औद्योगीकरण ने पहले से ही इस महाशक्तिशाली नदी को काफी हानि पहुँचा दी है ।
स्थिति को भलीभांति समझने के लिए एक विशिष्ट उदाहरण लेते हैं। उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में इस नदी का सर्वाधिक प्रदूषित फैलाव है। कानपुर उत्तर प्रदेश के अत्यधिक जनसंख्या वाले शहरों में से एक है। इस नदी में लोगों को स्नान करते, कपड़े धोते तथा मल मूत्र त्यागते देखा जा सकता है। वे इस नदी में कूड़ा- करकट, फूल, पूजा सामग्री तथा जैव-अनिम्नीकरणीय पॉलिथीन की थैलियाँ फेंकते हैं । कानपुर में नदी में जल की मात्रा अपेक्षाकृत कम है तथा नदी का प्रवाह भी अति धीमा है।
इसके साथ ही, कानपुर में 5000 से अधिक औद्योगिक इकाइयाँ हैं। इनमें उर्वरक, अपमार्जक, चर्म तथा पेंट की फ़ैक्टरी सम्मिलित हैं। ये औद्योगिक इकाइयाँ विषाक्त रासायनिक अपशिष्टों का नदी में विसर्जन करती हैं । बहुत-सी औद्योगिक इकाइयाँ हानिकारक रसायनों को नदियों तथा नालों में प्रवाहित करती हैं जिसके कारण जल-प्रदूषण होता है।
इसके उदाहरण तेल रिफाइनरी, कागज फ़ैक्टरी, वस्त्र तथा चीनी मिलें एवं रासायनिक फ़ैक्टरी हैं। ये उद्योग जल का रासायनिक प्रदूषित करते हैं। इन विसर्जित रसायनों में आर्सेनिक, लेड तथा फ्रलुओराइड होते हैं जिनसे पौधों तथा पशुओं में आविषता उत्पन्न हो जाती है। इसे रोकने के लिए सरकार ने अधिनियम बनाए हैं। इनके अनुसार उद्योगों को अपने यहाँ उत्पन्न अपशिष्टों को जल में प्रवाहित करने से पूर्व उपचारित करना चाहिए, परन्तु प्रायः इन नियमों का पालन नहीं किया जाता। अशुद्ध जल से मृदा भी प्रभावित होती है जिसके कारण उसकी अम्लीयता तथा कृमियों की वृद्धि में भी परिवर्तन हो जाता है।
जल प्रदूषण को रोकने के उपाय
औद्योगिक इकाइयों के लिए बनाए गए नियमों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए ताकि प्रदूषित जल को सीधे ही नदियों तथा झीलों में नहीं बहाया जा सके । सभी औद्योगिक क्षेत्रों में जल उपचार संयंत्र स्थापित किए जाने चाहिए । व्यक्तिगत स्तर पर हमें निष्ठापूर्वक जल की बचत करनी चाहिए और उसे बेकार नहीं करना चाहिए । कम उपयोग (Reduce), पुनः उपयोग (Reuse) पुनः चक्रण (Recycle) हमारा मूल मंत्र होना चाहिए ।
जब आप नल को खुला छोड़कर अपने दाँतों में ब्रुश करते हैं तो कई लीटर जल व्यर्थ हो जाता है। जिस नल से प्रति सेकंड एक बूँद जल टपकता है, उस नल से एक वर्ष में कई हज़ारो लीटर जल नष्ट हो जाता है।
धुलाई तथा अन्य घरेलू कार्य में उपयोग हो चुके जल के पुनः उपयोग संबंधी नए-नए विचारों के बारे में हम सोच सकते हैं । उदाहरण के लिए, सब्जियों को धोने के लिए इस्तेमाल जल का उपयोग पौधों की सिंचाई में किया सकता है ।
जल प्रदूषण के प्रभाव
प्रदूषण अब कोई दूरस्थ घटना नहीं रह गयी है। यह हमारे दैनिक जीवन को प्रभावित कर रहा है। जब तक हम सभी अपने दायित्व की अनुभूति नहीं करते तथा पर्यावरण-हितैषी प्रक्रमों का उपयोग आरंभ नहीं करते, हमारी पृथ्वी की उत्तरजीविता संकट में है ।
जल प्रदूषण से होने वाली बीमारियां
- अधिक मात्रा में फलूओराइड्स युक्त जल से फलोरोसिस नामक रोग हो जाता है इसके कारण अस्थियों व दॉतों में तेजी से कैल्सिकरण होता है।
- पारा के कारण मिनीमाटा रोग उत्पन्न होता है।
- जल में स्थित कैडमियम, यकृत, वृक्क तथा थाइरॉइड में इटाई-इटाई रोग उत्पन्न करता है।
- जल में अत्यधिक मात्रा में उपस्थित नाइट्रेट हीमोग्लोबिन से क्रिया कर मिथेहीमोग्लोबिन बनाता है, जो ऑक्सीजन के परिवहन को विकृत करता है। इसे मिथेहीमोग्लोबिन या ब्लू-बेबी सिण्ड्रोम कहते है।
जल प्रदूषण FAQ
जल प्रदूषण किसे कहते हैं
जब भी वाहित मल, विषैले रसायन, गाद आदि जैसे हानिकर पदार्थ जल में मिल जाते हैं तो जल प्रदूषण हो जाता है । जल को प्रदूषित करने वाले पदार्थों को जल प्रदूषक कहते हैं मुख्यतया कारखानों के अपषिष्ट, वाहित मल (Sewage) तथा अपषिष्ट पदार्थ जलीय प्रदूषण उत्पन्न करते हैं ।
जल प्रदूषण का मुख्य कारण क्या है?
जल प्रदूषण का मुख्य कारण कारखानों के अपषिष्ट, वाहित मल (Sewage),विषैले रसायन, गाद तथा अपषिष्ट पदार्थ हैं ।
जल को बचाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
व्यक्तिगत स्तर पर हमें निष्ठापूर्वक जल की बचत करनी चाहिए और उसे बेकार नहीं करना चाहिए । कम उपयोग (Reduce), पुनः उपयोग (Reuse) पुनः चक्रण (Recycle) हमारा मूल मंत्र होना चाहिए।
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