बाल विकास का सामान्य अर्थ होता है बालकों का मानसिक व शारीरिक विकास l विकास शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संज्ञानात्मक, भाषाई तथा धार्मिक इत्यादि होता है l बाल विकास का संबंध गुणात्मक एवं परिमाणात्मक दोनों से है l शिक्षकों को एक निश्चित आयु के सामने बालकों को शारीरिक मानसिक सामाजिक तथा संवेगात्मक परिपक्वता का ज्ञान होना आवश्यक है, जिससे वे उनकी क्रियाओं को नियंत्रित करके अपेक्षित दिशा प्रदान कर सकें l
बाल विकास के महत्वपूर्ण सिद्धांत
बाल विकास के महत्वपूर्ण सिद्धांत निम्नलिखित है-
1. निरंतरता का सिद्धांत
बाल विकास के इस के सिद्धांत के अनुसार विकास एक ना रुकने वाली प्रक्रिया है l मां के गर्भ से ही यह प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है और मृत्यु पर्यंत चलती रहती है l एक छोटे से अल्प आकार से अपना जीवन प्रारंभ करके हम सब के व्यक्तित्व के सभी पक्षों शारीरिक मानसिक सामाजिक आदि का संपूर्ण विकास इसी निरंतरता के गुण के कारण भली-भांति संपन्न कर सकते हैं l
2. वैयक्तिक विभिन्नता का सिद्धांत
बाल विकास के इस सिद्धांत के अनुसार बालकों का विकास और वृद्धि उनकी व्यक्तित्व के अनुरूप होती है l वे अपनी स्वाभाविक गति से ही वृद्धि और विकास के विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ते रहते हैं और इसी कारण उनमे पर्याप्त वैयक्तिक विभिन्नता देखने को मिलती हैं l
3. विकास क्रम की एकरूपता
यह सिद्धांत बताता है कि विकास की गति एक जैसी ना होने पर तथा पर्याप्त व्यक्तिक अंतर पाए जाने पर भी विकास क्रम में एक रूप कुछ एकरूपता के दर्शन होते हैं l इस क्रम में एक ही जाति विशेष के सभी सदस्यों में कुछ एक जैसी विशेषताएं देखने को मिलती हैं l उदाहरण के लिए मनुष्य जाति के सभी बालकों की वृद्धि सिर की ओर से प्रारंभ होती है l
4. वृद्धि एवं विकास की गति की दर एक-सी नहीं रहती
विकास की प्रक्रिया जीवन प्रयत्न चलती तो है, किंतु इस प्रक्रिया में विकास की गति हमेशा एक जैसी नहीं होती l शैशवावस्था के शुरू के वर्षों में यह गति कुछ तीव्र होती है, परंतु बाद के वर्षों में यह मंद पड़ जाती है l पुनः किशोरावस्था के प्रारंभ में इस गति में तेजी से वृद्धि होती है परंतु यह अधिक समय तक नहीं बनी रहती l
5. विकास सामान्य से विशेष की ओर चलता है
विकास और वृद्धि की सभी दिशाओं में विशिष्ट क्रियाओं से पहले उनके सामान्य रूप से दर्शन होते हैं l उदाहरण के लिए अपने हाथों में कुछ चीज पकड़ने से पहले बालक इधर से उधर हाथ मारने या फैलाने की कोशिश करता है l इसी तरह शुरू में एक नवजात शिशु के रोने और चिल्लाने में उसके सभी अंग प्रत्यंग भाग लेते हैं, परंतु बाद में वृद्धि और विकास की प्रक्रिया के फल स्वरुप यह क्रियाएं उसकी आंखों और वाक्य तंत्र तक सीमित हो जाती हैं l
6. परस्पर संबंध का सिद्धांत
विकास के सभी आयाम: जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक आदि एक दूसरे से परस्पर संबंधित हैं l इनमें से किसी भी एक आयाम में होने वाला विकास अन्य सभी आयामों में होने वाले विकास की पूरी तरह प्रभावित करने की क्षमता रखता है l
7. एकीकरण का सिद्धांत
विकास की प्रक्रिया एकीकरण के सिद्धांत का पालन करती है l इसके अनुसार, बालक पहले संपूर्ण अंग को और फिर अंक के भागों को चलाना सकता है इसके बाद वह उन भागों में एकीकरण करना सीखता है l सामान्य से विशेष की ओर बढ़ते हुए विशेष प्रति क्रियाओं तथा कोशिशों को एक साथ प्रयोग में लाना सीखता है l
8. विकास की दिशा का सिद्धांत
बाल विकास के इस सिद्धांत के अनुसार विकास की प्रक्रिया पूर्व निश्चित दिशा में आगे बढ़ती है l
9. विकास की भविष्यवाणी की जा सकती है
एक बालक की अपनी वृद्धि और विकास की गति को ध्यान में रखकर उसके आगे बढ़ने की दिशा और स्वरूप के बारे में भविष्यवाणी की जा सकती है l उदाहरण के लिए, एक बालक की कलाई और हड्डियों का X-Ray लिया जाने वाला चित्र है बताता है कि उसका आकार- प्रकार आगे जाकर किस प्रकार का होगा? इसी तरह बालक की इस समय की मानसिक योग्यताओं के ज्ञान के सहारे उसके आगे की मानसिक विकास के बारे में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है l
10. विकास लंबवत सीधा ना होकर वर्तुलाकार होता है
बालक का विकास लंबवत सीधा ना होकर वर्तुलाकार होता है l वह एक ही गति से सीधा चलकर विकास को प्राप्त नहीं होता, बल्कि बढ़ते हुए पीछे हटकर अपने विकास को परिपक्व और स्थाई बनाते हुए वर्तुलाकार आकृति की तरह आगे बढ़ता है l
11. वृद्धि और विकास की क्रिया वंशानुक्रम और वातावरण का संयुक्त परिणाम है
बालक की वृद्धि और विकास को किसी स्तर पर वंशानुक्रम और वातावरण की संयुक्त देन माना जाता है l दूसरे शब्दों में वृद्धि और विकास की प्रक्रिया में वंशानुक्रम जहां आधार का कार्यकर्ता है वहां वातावरण इस आधार पर बनाए जाने वाले व्यक्तित्व संबंधी भवन के लिए आवश्यक सामग्री एवं वातावरण जुटाने में सहयोग देता है l
बाल विकास को प्रभावित करने वाले कारक
बाल विकास को प्रभावित करने वाले कारक कारकों को विद्वानों ने दो भागों में विभाजित किया है
A. बाल विकास को प्रभावित करने वाले आंतरिक कारक
बाल विकास को आंतरिक कारक बहुत हद तक प्रभावित करते हैं, जो कि उसके विकास के लिए महत्वपूर्ण आधार निर्मित करते हैं l
1. वंशानुगत कारक
बालक के रंग-रूप, आकार, शारीरिक गठन, ऊंचाई इत्यादि के निर्धारण में उसके अनुवांशिक गुणों का महत्वपूर्ण योगदान होता है l बालक के अनुवांशिक गुण उसकी वृद्धि एवं विकास को भी प्रभावित करते हैं l
2. शारीरिक कारक
जो बालक जन्म से ही दुबले-पतले, कमजोर, बीमार तथा किसी प्रकार की शारीरिक समस्या से पीड़ित रहते हैं, उनकी तुलना में सामान्य एवं स्वस्थ बच्चे का विकास अधिक होना स्वाभाविक ही है शारीरिक कमियों का स्वास्थ्य पर ही नहीं अपितु वृद्धि एवं विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है l
3. बुद्धि
बुद्धि को अधिगम की योग्यता, समायोजन योग्यता, निर्णय लेने की क्षमता इत्यादि के रूप में परिभाषित किया जाता है l जिस प्रकार बालक के सीखने की गति अधिक होती है उसका मानसिक विकास भी तीव्र गति से होता है l बालक अपने परिवार समाज एवं विद्यालय में अपने आप को किस तरह समायोजित करता है, यह उसकी बुद्धि पर निर्भर करता है l
4. संवेगात्मक कारक
बालक में जिस प्रकार के समय को भावों का जिस रूप में विकास होगा वह उसके सामाजिक मानसिक नैतिक शारीरिक तथा भाषा संबंधी विकास को पूरी तरह प्रभावित करने की क्षमता रखता है l
B. बाल विकास को प्रभावित करने वाले बाह्य कारक
बालक के विकास की प्रक्रिया को प्रभावित करने में उपरोक्त आर्थिक कारकों के साथ ही निम्नलिखित बहाए कारकों की काफी महत्वपूर्ण भूमिका होती है
1. गर्भावस्था के दौरान माता का स्वास्थ्य एवं परिवार
गर्भावस्था में माता को अच्छा मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य बनाए रखने की सलाह इसलिए दी जाती है कि उससे ना केवल गर्भ के अंदर बालक के विकास पर असर पड़ता है, बल्कि आगे के विकास की बुनियादी मजबूत होती है
2. जीवन की घटनाएं
जीवन की घटनाओं का भी बालक के जीवन पर प्रभाव पड़ता है यदि बालक के साथ अच्छा व्यवहार हुआ है, तो उसके विकास की गति सही होगी अन्यथा उसके विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा l
3. भौतिक वातावरण
बालकों का जन्म किस परिवेश में हुआ, वह किस परिवेश में किन लोगों के साथ रह रहा है ? इन सबका प्रभाव उसके विकास पर पड़ता है l
बाल विकास के सिद्धांतों का शैक्षिक महत्व
- बाल विकास के सिद्धांतों के ज्ञान के फल स्वरुप शिक्षकों को बालकों की स्वभागवत विशेषताओं रुचियो एवं क्षमताओं के अनुरूप सफलतापूर्वक अध्यापन में सहायता मिलती है l निचली कक्षाओं में शिक्षण की खेल पद्धति मूल रूप से वृद्धि एवं विकास के मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित है l
- बाल विकास के सिद्धांतों से हमें यह जानकारी मिलती है कि विकास की किस अवस्था में बालकों में सीखने की प्रवृत्ति किस प्रकार की होती है? यह उचित शिक्षण विधि अपनाने में शिक्षकों की सहायता करता है l
- बालकों की वृद्धि और विकास के सिद्धांतों से बालकों की भविष्य में होने वाली प्रगति का अनुमान लगाना काफी हद तक संभव होता है l इस तरह बालक विकास के सिद्धांतों की जानकारी बालकों के मार्गदर्शन परामर्श एवं निर्देशन में सहायक होकर उनके भविष्य निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाती है l
- वृद्धि और विकास की सभी दिशाएं अर्थात विभिन्न पहलुओं जैसे- मानसिक विकास, शारीरिक विकास, संवेगात्मक विकास और सामाजिक विकास आदि परस्पर एक दूसरे से संबंधित हैं l इस बात का ज्ञान शिक्षकों और अभिभावकों को बालक के सर्वांगीण विकास पर ध्यान देने के लिए प्रेरित करता है l
- बाल विकास के सिद्धांतों के ज्ञान से बालक की रुचियो, अभिवृद्धि और क्षमता इत्यादि के अनुरूप उचित पाठ्यक्रम के निर्धारण एवं समय सारणी के निर्माण में सहायता मिलती है l
- बाल विकास का अध्ययन शिक्षक को इस बात की स्पष्ट जानकारी दे सकता है कि बालक की शक्तियों योग्यताओं, क्षमताओं तथा व्यवहार एवं व्यक्तिगत गुणों के विकास में अनुवांशिक तथा वातावरण किस सीमा, तक किस रूप में उत्तरदाई ठहराया जा सकते हैं? यह जानकारी शिक्षक को अपने उत्तरदायित्व का सही तरीके से पालन करने में सहायता होती है l
- यदि शिक्षार्थी कक्षा में पढ़ने में रुचि नहीं ले रहा है तो अध्यापक को उस विद्यार्थी की रूचि के अनुसार अथवा अपने विषय के अनुसार रूचि पूर्ण बातों को बताना चाहिए इससे शिक्षार्थी में पढ़ने के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न होगी l