मानव के प्रमुख श्वसन तंत्र (Respiratory system in hindi) फेफड़े होते हैं। फेफड़ों तक बाहरी वायु के आवागमन हेतु नासिका, ग्रसनी, वायुनाल तथा इसकी शाखाएँ मिलकर एक जटिल वायु मार्ग बनाती है।
इस प्रकार ये सभी संवाही अंग तथा फेफड़े मिलकर मानव का श्वसन तंत्र (Respiratory system in Hindi) बनाते हैं। मानव में फेफड़े respiratory system in Hindi में श्वसन अंग का काम करते है। फेफड़े के ऊपर दोहरी झिल्ली होती है, जिसे फुफ्फुसावाणी कला या प्लूरा कहते हैं। खरगोश के दाएँ फेफड़े में चार पालियॉ होती हैं, जबकि मानव में तीन पालियॉ होती हैं। संवाही अंग वायु को वातावरण से फेफड़ों तक पहुँचाने का कार्य करते हैं।
Respiratory system in Hindi के अंगों के नाम
1.नासाद्वार (Nostrils) के बीच का स्थान नासा वेश्म होता है । इसके पृष्ठ भाग में घ्राण उपकला होती है तथा शेष भाग में रोमाभि उपकला होती है।
2.ग्रसनी (Pharynx) मुख गुहा का पिछला भाग है, जो घॅाटी या ग्लॉटिस द्वारा लैरिक्स (larynx) में खुलता है । ग्लॉटिस के ऊपर एपिग्लॉटिस (epiglottis) लगा होता है, जो भोजन निगलते समय श्वासनली का छिद्र बन्द कर देता है।
3.कण्ड या स्वर यन्त्र (Larynx) के चारों ओर उपस्थि की बनी चार प्लेट पाई जाती है।
4.श्वासनाल (Trachea) श्वासनाल ग्रासनली के अधर तल से चिपकी रहती है। इसकी भित्ती में हायलाइन उपास्थि के बने C के आकार के छल्ले बने होते है।
5.श्वसनी (Bronchus) श्वसनी वक्षगुहा में जाकर दो श्वसनी में विभक्त हो जाती है। इनकी भित्ती में भी उपास्थि के छल्ले होते है।
6.श्वसनिका (Bronchiole) खरगोष में दाहिनी श्वसनी चार तथा मानव में तीन श्वसनिकाओं में विभक्त हो जाती है । श्वसनिकाएँ कूपिका वाहिनियों में विभक्त हो जाती है।
श्वासोच्छावास (Breathing)
मानव एवं अन्य स्तनधारियों में शरीर का वक्ष भाग एक पिंजरे के समान बन्द होता है । इसके आगे की ओर गर्दन, पीछे की ओर डायफ्राम, पृष्ठतल पर केरूदण्ड, अधरतल पर स्टर्नम तथा पार्श्वों में पसलियॉ होती है । श्वासोच्छवास या बाहा श्वसन में वायु का अन्तःश्वास एवं उच्छवास होता है।
अन्तःश्वास (Inspiration) इस प्रक्रिया में वायु अन्दर ली जाती है, जिससे डायफ्राम की पेषियॉ संकुचित होती हैं एवं डायफ्राम समतल हो जाता है।
उच्छवास (Expiration) उच्छवास की क्रिया में वायु फेफड़ों से बाहर निकाली जाती है । जिससे डायफ्राम एवं पसलियों की पेषियॉ शिथिल हो जाती है। तथा डायफ्राम फिर से गुम्बद के आकार का हो जाता है।
मानव में वायु का मार्ग इस प्रकार होता है-
नासारन्ध्र – ग्रसनी – स्वर तन्त्र – श्वासनाल – श्वसनिकाएँ – वायु कोष्ठक – रूधिर – कोशिका
मानव की हर सामान्य सॉस में लगभग 2 सेकण्ड की अन्तःश्वास और 3 सेकण्ड की उच्छावास होती है । मानव एक मिनट में 12-15 बार सॉस लेता है, जबकि नवजात शिशु एक मिनट में लगभग 40 बार सॉस लेता है ।
Respiratory system in Hindi तंत्र की क्रियाविधि
सामान्यतः हम अपने नथुनों (नासा-द्वार) से वायु अंदर लेते हैं । जब हम वायु को अंतःश्वसन द्वारा अंदर लेते हैं, तो यह हमारे नथुनों से नासा-गुहा में चली जाती है । नासा-गहु से वायु श्वास नली से होकर हमारे फेफड़े में जाती है । फेफड़े वक्ष-गुहा में स्थित होते हैं । वक्ष-गुहा पार्श्व में पसलियों से घिरी रहती है । एक बड़ी पेशीय परत, जो डायाप्रफाम (मध्यपट) कहलाती है, वक्ष-गुहा को आधर प्रदान करती है ।
श्वसन में डायाप्रफाम और पसलियों से बने पिंजर की गति सम्मिलित होती है । अंतःश्वसन के समय पसलियाँ ऊपर और बाहर की ओर गति करती हैं और डायाप्रफाम नीचे की ओर गति करता है । यह गति हमारी वक्ष गुहा के आयतन को बढ़ा देती है और वायु फेफड़े में आ जाती है । फेफड़े वायु से भर जाते हैं । उच्छ्वसन के समय पसलियाँ नीचे और अंदर की ओर आ जाती हैं, जबकि डायाप्रफाम ऊपर की ओर अपनी पूर्व स्थिति में आ जाता है । इससे वक्ष-गुहा का आयतन कम हो जाता है । इस कारण वायु फेफड़े से बाहर धकेल दी जाती है ।
श्वसन संबंधी आयतन और क्षमताएं
ज्वारीय आयतन (Tidal Volume, TV): सामान्य श्वसन क्रिया के समय प्रति श्वास अंतः श्वसित या निःश्वासित वायु का आयतन यह लगभग 500 मिली. होता है अर्थात् स्वस्थ मनुष्य लगभग 6000 से 8000 मिली. वायु प्रति मिनट की दर से अंतः श्वासित/निःश्वासित कर सकता है।
अंतःश्वसन सुरक्षित आयतन (Inspiratory Reserve Volume IRV): वायु आयतन की वह अतिरिक्त मात्रा जो एक व्यक्ति बलपूर्वक अंतः श्वासित कर सकता है। यह औसतन 2500 मिली. से 3000 मिली. होता है।
निःश्वसन सुरक्षित आयतन (Expiratory reserve volume, ERV): वायु आयतन की वह अतिरिक्त मात्रा जो एक व्यक्ति बलपूर्वक निःश्वासित कर सकता है। औसतन यह 1000 मिली. से 1100 मिली. होती है।
अवशिष्ट आयतन (Residual Volume, RV): वायु का वह आयतन जो बलपूर्वक निःश्वसन के बाद भी फेफड़े में शेष रह जाता है । इसका औसत 1100 मिली. से 1200 मिली. होता है।
अंतःश्वसन क्षमता (Inspiratory Capacity, IC): सामान्य निःश्वसन उपरांत वायु की कुल मात्रा (आयतन) जो एक व्यक्ति अंतःश्वासित कर सकता है । इसमें ज्वारीय आयतन तथा अंतःश्वसन सुरक्षित आयतन सम्मिलित है (TV+IRV) ।
निःश्वसन क्षमता (Expiratory Capacity, EC): सामान्य अंतःश्वसन उपरांत वायु की कुल मात्रा (आयतन) जिसे एक व्यक्ति निःश्वासित कर सकता है । इसमें ज्वारीय आयतन और निःश्वसन सुरक्षित आयतन सम्मिलित होते हैं TV+ERV) ।
क्रियाशील अवशिष्ट क्षमता (Functional Residual Capacity, FRC): सामान्य निःश्वसन उपरांत वायु की वह मात्रा (आयतन) जो फेफड़े में शेष रह जाती है । इसमें निःश्वसन सुरक्षित आयतन और अवशिष्ट आयतन सम्मिलित होते हैं (ERV+RV) ।
जैव क्षमता (Vital Capacity, VC): बलपूर्वक निःश्वसन के बाद वायु की वह अधिकतम मात्रा जो एक व्यक्ति अंतःश्वासित कर सकता है । ERV, TV और IRV सम्मिलित है अथवा वायु की वह अधिकतम मात्रा जो एक व्यक्ति बलपूर्वक अंतःश्वसन के बाद निःश्वासित कर सकता है ।
फेफड़े की कुल क्षमता (Total Lung Capacity): बलपूर्वक निःश्वसन के पश्चात फेफड़े में समायोजित (उपस्थित) वायु की कुल मात्रा । इसमें RV, ERV, TV और IRV सम्मिलित है । यानि जैव क्षमता+ अवशिष्ट क्षमता (VC+RV) ।
Respiratory system in Hindi Regulation of Respiration
मानव में अपने शरीर के ऊतकों की माँग के अनुरूप श्वसन की लय को संतुलित और स्थिर बनाए रखने की एक महत्वपूर्ण क्षमता है । यह नियमन तंत्रिका तंत्र द्वारा संपन्न होता है । मस्तिष्क के मेड्यूला क्षेत्र में एक विशिष्ट श्वसन लयकेंद्र विद्यमान होता है, जो मुख्य रूप से श्वसन के नियमन के लिए उत्तरदायी होता है । मस्तिष्क के पोंस क्षेत्र में एक अन्य केंद्र स्थित होता है जिसे श्वासप्रभावी (Pneumotaxic) केंद्र कहते हैं जो श्वसन लयकेंद्र के कार्यों को सुधर कर सकता है । इस केंद्र के तंत्रिका संकेत अंतःश्वसन की अवधि को कम कर सकते हैं और इस प्रकार श्वसन दर (Respiratory rate) को परिवर्तित कर सकते हैं ।
लयकेंद्र के पास एक रसोसंवेदी(Chemo sensitive) केंद्र लयकेंद्र के लिए अति संवेदी होता है, जो CO2 और हाइड्रोजन आयनों के लिए अति संवेदी होता है । इन पदार्थो की वृद्धि से यह केंद्र सक्रिय होकर श्वसन प्रक्रिया में आवश्यक समायोजन करता है, जिससे ये पदार्थ निष्कासित किए जा सके । महाधमनी चाप और ग्रीवा ध्मनी से जुड़ी संवेदी संरचनाएं भी CO2 और H+ सांद्रता के परिर्वतन को पहचान सकते हैं तथा उपचारात्मक कार्यवाही हेतु लयकेंद्र को आवश्यक संकेत दे सकते हैं । श्वसन लय के नियमन में ऑक्सीजन की भूमिका बहुत ही महत्वहीन है ।
श्वसन तंत्र (respiratory system in Hindi) के रोग
दमा (Asthma): दमा में श्वसनी और श्वसनिकाओं की शोथ के कारण श्वासन के समय घरघरहाट होती है तथा श्वास लेने में कठिनाई होती है ।
श्वसनी शोथ (Bronchitis): यह श्वसनी की शोथ है जिसके विशेष लक्षण श्वसनी में सूजन तथा जलन होना है जिससे लगातार खाँसी होती है ।
वातस्पफीति या एम्पफाइसिमा (Emphysema): एक चिरकालिक रोग है जिसमें कूपिका भित्ति क्षतिग्रस्त हो जाती है जिससे गैस विनिमय सतह घट जाती है । धूम्रपान इसके मुख्य कारकों में एक है ।
व्यावसायिक श्वसन रोग (Occupational Respiratory Disease): कुछ उद्योगों में विशेषकर जहाँ पत्थर की घिसाई – पिसाई या तोड़ने का कार्य होता है, वहाँ इतने धूल कण निकलते हैं कि शरीर की सुरक्षा प्रणाली उन्हें पूरी तरह निष्प्रभावी नहीं कर पाती । दीर्घकालीन प्रभावन शोथ उत्पन्न कर सकता है जिनसे रेशामयता (रेशीय ऊतकों की प्रचुरता) होती है, जिसके पफलस्वरूप फेफड़े को गंभीर नुकसान हो सकता है । इन उद्योगों के श्रमिकों को मुखावरण का प्रयोग करना चाहिए।