रक्त एक तरल संयोजी ऊतक है। मानव के शरीर में रक्त की मात्रा 5-6 लीटर होती है। रक्त सम्पूर्ण शरीर का 6-10 प्रतिशत भाग बनाता है। रक्त अपारदर्शी तथा चिपचिपा द्रव है।
रक्त क्या होता है
रक्त एक विशेष प्रकार का ऊतक है, जिसमें द्रव्य आधत्राी प्लाज्मा तथा अन्य संगठित संरचनाएं पाई जाती हैं। रक्त का PH 7.3-7.4 होता है। रक्त हल्का क्षारीय प्रकृति का होता है।
रक्त के मुख्य घटक
रक्त के दो मुख्य घटक होते हैं
1.प्लाज्मा
प्लाज्मा एक हल्के पीले रंग का गाढ़ा तरल पदार्थ है। प्लाज्मा ब्लड के आधात्री को दर्शाता है। यह पारदर्शी हल्का सा क्षारीय तथा रक्त के आयतन का 55-60% भाग होता है। इसमें जल (91-92%) तथा ठोस (8-9%) होता है। इसके ठोस भाग में 7% प्रोटीन (एल्ब्युमिन, ग्लोब्युलिन तथा फाइब्रिनोजन इम्युनोग्लोब्युलिन, प्रोथ्रॉम्बिन) होता है।
फाइब्रिनोजन की आवश्यकता रक्त का थक्का बनाने में होती है। ग्लोबुलिन का उपयोग शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र तथा एल्बूमिन का उपयोग परासरणी संतुलन के लिए होता है। प्लाज्मा में अनेक खनिज आयन जैसे Na+, Ca++, Mg++, HCo3Cl- इत्यादि भी पाए जाते हैं। शरीर में संक्रमण की अवस्था में होने के कारण ग्लूकोज, अमीनों अम्ल तथा लिपिड भी प्लाज्मा में पाए जाते हैं। रक्त का थक्का बनाने अथवा स्कंदन के अनेक कारक प्रद्रव्य के साथ निष्क्रिय दशा में रहते हैं। बिना थक्का कारकों के प्लाज्मा को सीरम कहते हैं।
2.रक्त कणिकाएँ
रक्त कणिकाएँ रक्त का 40-50% भाग बनाती है। रक्त कणिकाएँ तीन प्रकार की होती हैं। लाल रक्त कणिका, श्वेताणु तथा प्लेटलेट्स को संयुक्त रूप से रक्त कणिकाएँ कहते हैं।
A.रक्त ब्लड कणिकाएँ
रक्त ब्लड कणिकाएँ को इरिथा्रेसाइट्स भी कहते हैं। स्तनधारियों की रक्त ब्लड कणिकाएँ केन्द्रविहीन होती है। रक्त ब्लड कणिकाएँ आकार में उभयवतली होती हैं एवं मानव में इनका जीवनकाल 120 दिन तथा संख्या 500000/um होती है। रक्त ब्लड कणिकाएँ की संख्या का निर्धारण हीमोसाइटोमीटर द्वारा किया जाता है। महिलाओं में रक्त ब्लड कणिकाएँ की संख्या पुरूषों से कुछ कम होती है। गर्भस्थ शिशु में रक्त ब्लड कणिकाएँ का निर्माण यकृत एवं प्हीला में होता है, जबकि शिशु के जन्म के उपरान्त रक्त ब्लड कणिकाएँ का निर्माण मुख्यतया अस्थि मज्जा में होता है। रक्त ब्लड कणिकाएँ की अतिरिक्त मात्रा प्लीहा में संगृहीत होती है, जो ब्लड बैंक की भॉति कार्य करता है तथा यकृत रक्त ब्लड कणिकाएँ का कब्रिस्तान कहलाता है।
B.श्वेत रक्त कणिकाएँ
श्वेत रक्त कणिकाएँ को ल्यूकोसाइट भी कहते हैं। यह रक्त ब्लड कणिकाएँ से बड़ी तथा रंगहीन तथा केन्द्रक युक्त होती हैं। मनव के ब्लड में 8000-9000/ cu mm श्वेत रक्त कणिकाएँ उपस्थित होती हैं। श्वेत रक्त कणिकाएँ का प्रतिरक्षा तन्त्र में महत्वपूर्ण योगदान है, इसलिए ये ‘शरीर के सिपाही’ कहलाती है। श्वेत रक्त कणिकाएँ दो प्रकार की होती हैं।
C.प्लेटलेट्स
प्लेटलेट्स थ्रॅाम्बोसाइट भी कहलाती हैं। ये केन्द्रक रहित होती हैं तथा इनकी माप अनियमित, गोल या अण्डाकार होती है। इनकी संख्या 2-5 लाख/cu mm होती है एवं इनका जीवनकार लगभग एक सप्ताह होता है। ये रक्त के जमने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
ब्लड ग्रुप
मनुष्य का ब्लड एक जैसा दिखते हुए भी कुछ अर्थों में भिन्न होता है। ब्लड का कई प्रकार से समूहीकरण किया गया है। इनमें से दो मुख्य समूह ABO तथा Rh का उपयोग पूरे विश्व में होता है। ब्लड वर्ग के जनक ऑस्ट्रेलिया के कार्ल लैण्डस्टीनर है। ब्लड वर्ग A, B,O प्रतिजन की उपस्थिति पर आधारित होते है।
1.ABO ग्रुप
ब्लड वर्ग चार प्रकार के होते है A, B, AB तथ O, जिनमें से A, B तथा O वर्ग की खोज लैण्डस्टीनर के द्वारा सन् 1900 में की गई, जबकि AB ब्लड ग्रुप की खोज डिकास्टेलो तथा र्स्टले ने सन् 1902 में की थी। ABO समूह मुख्यतः लाल रक्त कणिकाओं की सतह पर दो प्रतिजन की उपस्थिति या अनुपस्थित पर निर्भर होता है। ये प्रतिजन A और B हैं जो प्रतिरक्षा अनुक्रिया को प्रेरित करते हैं। इसी प्रकार विभिन्न व्यक्तियों में दो प्रकार के प्राकृतिक प्रतिरक्षी मिलते हैं। प्रतिरक्षी वे प्रोटीन पदार्थ हैं जो प्रतिजन के विरुद्ध पैदा होते हैं। चार ब्लड समूहों, A, B, AB, और O में प्रतिजन तथा प्रतिरक्षी की स्थिति को देखते हैं।
ग्रुप AB सार्वत्रिक ग्राही है। ग्रुप O सार्वत्रित दाता है। दाता एवं ग्राही के ब्लड समूहों का ब्लड चढाने से पहले सावधनीपूर्वक मिलान कर लेना चाहिए जिससे ब्लड स्वंफदन एवं रक्त ब्लड कणिकाएँ के नष्ट होने जैसी गंभीर परेशानियां न हों। ब्लनडेल ने सन् 1825 में ब्लड आधान की तकनीक खोजी।
2.Rh Factor
Rh Factor की खोज लैण्डस्टीनर तथा वीनर ने सन् 1940 में रीसस बन्दर में की थी। वे जीन, जो Rh-कारक को नियन्त्रित करते हैं, कायिक गुणसूत्रों पर उपस्थित होते हैं। Rh+ पुरूष तथा Rh स्त्री का विवाह सही नहीं है, क्योंकि इसके कारण होने वाला प्रथम जन्म सुरक्षित होता है, जबकि दूसरा घातक होता है। इस रोग को गर्भ रक्ताणुकोरकता के नाम से जाना जाता है। इससे बचने के लिए आजकल प्रत्येक Rh- स्त्री की प्रथम जन्म के पश्चात सुरक्षा के लिए इम्युनोग्लोबुलिन जी का टीका दिया जाता है।
रक्त का स्कंदन
किसी चोट में रक्त का थक्का जम जाता है। यह क्रिया शरीर से अत्यधिक रक्त को बाहर निकलने से रोकती है। रक्त का थक्का जो मुख्य रूप से फाइब्रिन धागों के नेटवर्क से बनता है। मृत एवं क्षतिग्रस्त संगठित पदार्थ भी इस जाल में फँस जाते हैं।
रक्त प्लाज्मा में मौजूद एंजाइम थ्रोम्बिन की मदद से फाइब्रिनोजेन से फाइब्रिन का निर्माण होता है। थ्रोम्बिन प्लाज्मा में मौजूद निष्क्रिय प्रोथ्रोम्बिन से बनता है। इसके लिए थ्रोम्बोकिनेज एंजाइम समूह की आवश्यकता होती है। यह एंजाइम समूह रक्त प्लाज्मा में मौजूद कई निष्क्रिय कारकों की मदद से एक के बाद एक एंजाइमेटिक प्रतिक्रियाओं की श्रृंखला से बनता है। चोट या आघात के कारण रक्त में प्लेटलेट्स विशेष कारक छोड़ते हैं जो थक्के बनने की प्रक्रिया शुरू करते हैं। क्षतिग्रस्त ऊतक चोट वाली जगह पर कुछ ऐसे कारक भी छोड़ते हैं जो जमावट शुरू कर सकते हैं। इस प्रतिक्रिया में कैल्शियम आयन की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है।
रक्त से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
Q.1- प्लेटलेट्स…का स्त्रोत है।
1.फाइब्रिनोजन
2.आयन
3.थ्रॉम्बोप्लास्टिन
4.हीमोग्लोबिन
Ans-4.हीमोग्लोबिन
Q.2- एक सामान्य वयस्क मानव में रक्त दाब होता है
1.80/120 mm Hg
2.120/80 mm Hg
3.150/90 mm Hg
4.90/150 mm Hg
Ans- 2.120/80 mm Hg
Q.3- थ्रॉम्बोप्लास्टिन कहॉ से रक्त स्कन्दन के लिए प्राप्त होता है?
1.लाल ब्लड कणिका
2.प्लेटलेट्स
3.मोनोसाइट्स
4.लिम्फोसाइट्स
Ans- 2.प्लेटलेट्स
Q.4- रक्त में उपस्थित……….के कारण ब्लड का थक्का बनता है
1.हीमोग्लोबिन
2.श्वेत ब्लड कणिकाएँ
3.लाल ब्लड कणिकाएँ
4.प्लेटलेट्स
Ans- 4.प्लेटलेट्स