अलंकार का शाब्दिक अर्थ है आभूषण। जिस प्रकार सोने आदि के आभूषणों से शरीर की शोभा बढ़ाती है उसी प्रकार काव्य अलंकारों से काव्य। अलंकार के 3 भेद के होते है।
अलंकार किसे कहते हैं
काव्य के सौंदर्य को बढ़ावे वाले शब्द अलंकार कहलाते है। ‘अलंक्रियते इति अलंकारः’। जो अलंकृत या भूषित करे उसे ही अलंकार कहते हैं। जिस प्रकार आभूषण मनुष्य की शोभा में वृद्धि करते हैं ठीक उसी प्रकार अलंकार काव्य के सौंदर्य को बढ़ाते हैं।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार अलंकार की परिभाषा
भावों का उत्कर्ष दिखाने और वस्तुओं के रूप, गुण और क्रिया का अधिक तीव्र अनुभव कराने में कभी-कभी सहायक होने वाली उक्ति अंलकार है।
अलंकार के भेद
अलंकार 3 भेद के होते है
1.शब्दालंकार
2.अर्थालंकार
3.उभयालंकार
1.शब्दालंकार किसे कहते हैं
जब अलंकार का चमत्कार शब्द में निहित होता है तब वहॉ शब्दालंकार होता है। यहॉ शब्द का पर्याय रखने पर चमत्कार खत्म हो जाता है। अनुप्रास, लाटानुप्रास, यमक, श्लेष, वक्रोक्ति, पुनरुक्ति प्रकाश, पुनरूक्तिवदाभास, वीप्सा आदि शब्दालंकार हैं।
2.अर्थालंकार किसे कहते हैं
जब अलंकार का चमत्कार उसके शब्द के स्थान पर अर्थ में निहित हो तो वहा अर्थालंकार होता है। यहा पर्यायवाची शब्द रखने पर भी चमत्कार बना रहता है। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, उदाहरण, विरोधाभास आदि अर्थालंकार है।
3.उभय अलंकार किसे कहते हैं
जहॉ अलंकार का चमत्कार उसके शब्द और अर्थ दोनों में पाया जाए तो वहॉ उभयालंकार होता है। श्लेष अलंकार उभयालंकार की श्रेणी में आता है। शब्द के आधार पर शब्द श्लेष तथा अर्थ के आधार पर अर्थ श्लेष।
कुछ प्रमुख अलंकार निम्नलिखित हैं
1. अनुप्रास अलंकार किसे कहते हैं
जहॉ वाक्य में समान वर्णों की आवृत्ति एक से अधिक बार हो तो वहॉ अनुप्रास अंलकार होता है। वर्णो की आवृत्ति में स्वरों का समान होना आवष्यक नहीं होता है,
जैसे- चारू चंद्र की चंचल किरणें, खेल रही थीं जल-थल में।
अनुप्रास अलंकार के भेद
अनुप्रास में मुख्यतः चार भेद होते हैं
1.छेकानुप्रास, 2. वृत्यनुप्रास, 3. श्रुत्यनुप्रास, 4. अंत्यानुप्रास
1. छेकानुप्रास अलंकार किसे कहते हैं- जहॉ वाक्य में किसी एक वर्ण या वर्ण-समूह की आवृत्ति केवल एक ही बार हो अर्थात् वह वर्ण दो बार आए तो वहॉ छेकानुप्रास अलंकार होता है, जैसे
- इस करूणा कलित हदृय में अब विकल रागिनी बजती।
- भगवान भागों दुःख, जनता देष की फूले-फले।
2. वृत्यनुप्रास अलंकार किसे कहते हैं– जहॉ वाक्य में किसी एक वर्ण या वर्ण -समूह की आवृति एक से अधिक बार हो तो वहॉ वृत्यानुप्रास अलंकार होता है, जैसे-
- तरनि तनूजा तट तमाल तरूवर बहु छाए।
- जदपि सुजाति सुलच्छनी, सुबरन, सरस, सुवृत्त। भूषण बिनु न बिराजई, कविता, वनिता मित्त।
3.श्रृत्यनुप्रास अलंकार किसे कहते हैं– जहॉ मुख के एक ही उच्चारण स्थान से उच्चारित होने वाले वर्षों की आवृत्ति होती है तब वहॉ श्रृत्यनुप्रास अलंकार होता है, जैसे-
उच्चारण स्थान इस प्रकार है-
कंठ्य- अ, आ, क, ख, ग, घ, ड, ह
तालव्य- इ, ई, च, छ, ज, झ, ञ, य, श
मूर्धन्य- ऋ, ट,ठ, ढ, ड, ण, र, ष
दंत्य- त, थ, द, ध, न, स, ल
ओष्ठ्य- उ, ऊ, प, फ, ब, भ, म
कंठ-तालव्य- ए, ऐ
कंठ-ओष्ठ्य- ओ, औ
दन्त्य ओष्ठय- व
नासिक्य- ड, ञ, ण, न, म
- दिनांत था, थे दिन नाथ डूबते।
- सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे।
- तुलसीदास सीदत निस दिन देखत तुम्हारि निठुराई।
4.अंत्यानुप्रास अलंकार किसे कहते हैं– जब छंद की प्रत्येक पंक्ति के अंतिम वर्ण या वर्णो में समान स्वर या मात्राओं की आवृत्ति के कारण तुकांतता बनती हो तो वहॉ अंत्यानुप्रास अलंकार होता है, जैसे-
- बुंदेले हरबोलों के मुँह, हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।
- रघुकुल रीत सदा चली आई। प्राण जाय पर वचन न जाई।
2. यमक अलंकार किसे कहते हैं
एक ही शब्द अथवा वर्ण समूह दो या दो से अधिक बार भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयुक्त होता हैं, तब वहॉ यमक अलंकार होता है।
यमक अलंकार के उदाहरण
- कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय। या खाये बोराय जग, वा पाये बोराय।
- तीन बेर खाती थी वे तीन बेर खाती है।
- कुमोदिनी मानस मोदिनी कही।
3. श्लेष अलंकार किसे कहते हैं
जब कोई एक शब्द एकाधिक अर्थो में प्रयुक्त हो, तब वहॉ श्लेष अलंकार होता है।
श्लेष के दो भेद होते हैं-1.शब्द श्लेष 2. अर्थ श्लेष
जब कोई शब्द अपने एक से अधिक अर्थ प्रकट करे तो उस शब्द के कारण वहॉ शब्द होता है और जब श्लेष का चमत्कार शब्द के स्थान पर उसके अर्थ में निहित हो तो वहॉ अर्थ श्लेष होता है। अर्थ श्लेष में शब्द का पर्यायवाची शब्द रख देने पर भी श्लेष का चमत्कार बना रहता है।
श्लेष अलंकार के उदाहरण
- रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरे मोती मानस चून।
यहॉ पानी शब्द तीन अर्थो में प्रयुक्त हुआ है- चमक, इज्जत और जल
- अजौं तरयौना ही रहो, श्रुति सेवत इक अंग। नाक बास बेसरि लहो बसि मुकुल के संग।
यहॉ तरयौना- कान का आभूषण और तरयौ ना- जो भव सागर से पार नहीं हुआ, का दर्शाता है। साथ ही श्रुति शब्द-वेद तथा कान, नाक शब्द स्वर्ग तथा नासिका को दर्शाता है। बेसरि-नीच प्राणी और नाक का आभूषण ताकि मुकुतन शब्द मुक्त पुरुष और मोती ये दो अर्थ देता है।
अर्थ श्लेष अलंकार के उदाहरण
- नर की अरू नल नीर की गति एकै करि जोय जेतो नीचो है चलै तेतो ऊॅचो होय।
यहॉ प्रस्तुत ‘ऊॅचो’ शब्द ‘ऊचाई’ तथा ‘महानता’ को दर्शाता है।
4. उपमा अलंकार किसे कहते हैं
जब किन्हीं दो वस्तुओं मे रंग, रूप, गुण, क्रिया और स्वभाव आदि के कारण समानता या तुलना प्रदर्शित की जाती है, तब वहॉ उपमा अलंकार होता है।
उपमा अलंकार के अंग
1.उपमेय- जो वर्णन का विषय हो या जिसकी तुलना की जाए अर्थात् वर्णित वस्तु।
2.उपमान- जिससे तुलना की जाए अर्थात् जिससे उपमा की जाए।
3.समतावाचक शब्द- जिन शब्दों से समता दर्शायी जाए, जैसे-सा, सी, से, सरिस, सम, समान आदि शब्द।
4.साधारण गुण धर्म- जिस समान गुण के कारण तुलना की जाए, जैसे-सुंदरता आदि।
उपमा अलंकार के भेद
1.पूर्णोपमा- जहॉ उपमा अलंकार के चारों अंग वर्णित हों।
2.लुप्तोपमा- जब चारों अंगों में से कोई एक या एकाधिक अंग लुप्त हो।
3.मालोपमा- जब किसी एक ही उपमेय की तुलना एकाधिक उपमानों से की जाए।
उपमा अलंकार के उदाहरण
- मुख चंद्रमा के समान सुंदर है।
- पीपर पात सरिस मन डोला।
- हॅसने लगे तब हरि अहा। पूणेंदु-सा मुख खिल गया।
5. रूपक अलंकार किसे कहते हैं
जब उपमेय में उपमान को अभोद रूप से दर्शाया जाए, तब वहॉ रूपक अलंकार होता है। इनमें उपमेय में उपमान का आरोप किया जाता है।
रूपक अलंकार के भेद
रूपक के तीन भेद होते हैं
i. सांग रूपक, ii. निरंग रूपक, iii. परंपरित रूपक
रूपक अलंकार के उदाहरण
- चरन-सरोज पखारन लागा।
- बीती विभावरी जाग री, अंबर पनघट में डुबो रही, तारा घट ऊषा नागरी।
- उदित उदय गिरी मंच पर रघुवर बाल-पतंग। बिकसे संत-सरोज सब हरषे लोचन-भृंग।
6. उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते हैं
जब उपमेय में उपमान की बलपूर्व संभावना व्यक्त की जाती है, तब वहॉ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यहॉ संभावना अभिव्यक्ति हेतु जनु, जानो, मनु, निश्चय, प्रायः, बहुधा, इव, खलु आदि शब्द प्रयुक्त किए जाते है।
उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद
उत्प्रेक्षा के तीन भेद होते है- i.वस्तूत्प्रेक्षा, ii.हेतूत्प्रेक्षा, iii.फलोत्प्रेक्षा
उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण
- तरनि तनूजा तट तमाल तरूवर बहु छाए। झुके कूल सो जल परसन हित मनहु छुआए।
- सोहत आढे पीतपट श्याम सलोने गात। मनहुँ नीलमणि सैल पर आतप पर्यो प्रभात।
- चमचमात चंचल नयन, बिच घूँघट पट झीन। मानहु सुर सरिता विमल जल बिछरत दोऊ मीन।।
7. विरोधाभास अलंकार किसे कहते हैं
जहॉ वास्तविक विरोध न होते हुए भी विरोध का अभास हो, वहॉ विरोधाभास अलंकार होता है।
विरोधाभास अलंकार के उदाहरण
- या अनुरागी चित्त की गति समुझै नहिं कोय। ज्यों-ज्यों स्याम रंग त्यों-त्यों उज्जवल होय।
- तंत्रीनाद कवित रस सरस राग रति रंग। अनबूड़े बूड़े तरे जे बूड़े सब अंग।
8. उदाहरण अलंकार किसे कहते हैं
एक बात कह कर उसकी पुष्टि हेतु दूसरा समान कथन कहा जाए तब वहॉ उदाहरण अलंकार होता है। इस अलंकार में ज्यों, जिमि, जैसे, यथा वाचक समानता दर्शाने हेतु शब्द प्रयुक्त होते हैं।
उदाहरण अलंकार के उदाहरण
- जो पावै अति उच्च पद, ताको पतन निदान। ज्यों तपि-तपि मध्याहन लॉ, अस्त होत है भान।
- नीकी पै फीकी लगै, बिनु अवसर की बात। जैसे बरनत युद्ध में, नहिं श्रृंगार सुहात।