मानव पाचन तंत्र के अर्न्तगत ग्रहण किए गए भोजन का पाचन एवं अवशोषण होता है। मानव पाचन तंत्र में आहारनाल एवं सहायक पाचक ग्रन्थियाँ सम्मिलित हैं, जहॉ भोजन का यान्त्रिक एवं रासायनिक पाचन होता है। भोजन सभी सजीवों की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है। हमारे भोजन के मुख्य अवयव कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं वसा हैं।
अल्प मात्रा में विटामिन एवं खनिज लवणों की भी आवश्यकता होती है। भोजन से ऊर्जा एवं कई कच्चे कायिक पदार्थ प्राप्त होते हैं जो वृद्धि एवं ऊतकों के मरम्मत के काम आते हैं। जो जल हम ग्रहण करते हैं, वह उपापचयी प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है एवं शरीर के निर्जलीकरण को भी रोकता है।
हमारा शरीर भोजन में उपलब्ध जैव रसायनों को उनके मूल रूप में उपयोग नहीं कर सकता। अतः मानव पाचन तंत्र में छोटे अणुओं में विभाजित कर साधरण पदार्थों में परिवर्तित किया जाता है। जटिल पोषक पदार्थों को अवशोषण योग्य सरल रूप में परिवर्तित करने की इसी क्रिया को पाचन कहते हैं। हमारा मानव पाचन तंत्र इसे याँत्रिक एवं रासायनिक विधियों द्वारा संपन्न करता है।
मानव पाचन तंत्र के प्रमुख अंग
मानव पाचन तंत्र आहार नाल एवं सहायक ग्रंथियों से मिलकर बना होता है।
आहार नाल
आहार में नाल निम्न भाग होते हैं
मुंह
इसमें तालु, जिह्म तथा दांत होते है। तालु मुख की छत बनाता है तथा मुख का नासा कक्ष से पृथक् करता है। जिह्म पेशीय होती है, जिस पर स्वाद ग्रहण हेतु स्वाद कलिकाएँ पाई जाती है। दॉत, जबडे पर दांत कोष्ठ में लगे होते है। एक वयस्क मानव के प्रत्येक जबड़े में 16 दांत होते हैं। मुखगुहा में कई दांत और एक पेशीय जिह्ना होती है। प्रत्येक दांत जबड़े में बने एक सांचे में स्थित होता है। इस तरह की व्यवस्था को गर्तदंती कहते हैं।
मनुष्य सहित अधिकांश स्तनधरियों के जीवन काल में दो तरह के दांत आते हैं अस्थायी दांत समूह अथवा दूध के दांत जो वयस्कों में स्थायी दांतों से प्रतिस्थापित हो जाते हैं। इस तरह की दांत व्यवस्था को द्विबारदंती कहते हैं। वयस्क मनुष्य में 32 स्थायी दांत होते हैं, जिनके चार प्रकार हैं जैसे- कृंतक (I), रदनक (C), अग्र-चर्वणक(PM) और चर्वणक(M)। ऊपरी एवं निचले जबड़े के प्रत्येक आधे भाग में दांतों की व्यवस्था I, C, PM, M क्रम में एक दंतसूत्र के अनुसार होती है जो मनुष्य के लिए 2123/2123 है।
इनैमल से बनी दांतों की चबाने वाली कठोर सतह भोजन को चबाने में मदद करती है। जिह्ना स्वतंत्र रूप से घूमने योग्य एक पेशीय अंग है जो फ्रेनुलम द्वारा मुखगुहा की आधर से जुड़ी होती है। जिह्ना की ऊपरी सतह पर छोटे छोटे उभार के रूप में पिप्पल होते हैं, जिनमें कुछ पर स्वाद कलिकाएं होती हैं।
ग्रसनी
यह छोटे आकार 12-14 cm शंकुनुमा भाग होता है, जहॉ भोजन तथा वायू मार्ग एक दूसरे को काटते हैं। यह तीन भागों में विभाजित होती है। नासा ग्रसनी नासा कोष्ठ के पीछे, मुखग्रसनी मुखगुहा के पीछे, कण्डग्रसनी ग्रसनी का निचला भाग।
ग्रासनली
ग्रासनली लम्बी 22-25 cm संकरी, पेशीय तथा नालिका युक्त संरचना होती है। ग्रसिका एक पतली लंबी नली है, जो गर्दन, वक्ष एवं मध्यपट से होते हुए पश्च भाग में J आकार के थैलीनुमा आमाशय में खुलती है। ग्रसिका का आमाशय में खुलना एक पेशीय अवरोधिनी द्वारा नियंत्रित होता है।
अग्नाशय
आमाशय गुहा के ऊपरी बाएं भाग में स्थित होता है। आमाशय को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है- कार्डियक आमाशय, पाइलोरिक आमाशय तथा फंडिक आमाशय। आमाशय की आन्तरिक श्लेष्मा अत्यधिक संख्या में अनुदैर्ध्य लवन भी बनाती है, जो जठरीय वली कहलाती है। आमाशय में ज्यादा HCL का श्रवण, पेप्टिक अल्सर का कारण बनता है। जठरागम भाग जिसमें ग्रसिका खुलती है फडिस क्षेत्र और जठरनिर्गमी भाग जिसका छोटी आंत में निकास होता है।
छोटी आंत
छोटी आंत आहारनाल का सबसे लम्बा लगभग 2 फीट से 6 फीट भाग होता है। यह तीन ग्रहणी, मध्यान्त्र तथा क्षुद्रान्त मे विभाजित होता है। ग्रहणी पित्त अग्न्याशय वाहिनी से रस पाचक ग्रहण करती है। क्षुद्रान्त में वसीय अम्ल का अवशोषण तथा कार्बोहाइड्रेट, वसा तथा प्रोटीन का पूर्ण पाचन होता है। छोटी ऑत की आन्तरिक श्लेष्मिका में अनेक अंगुली के सामान उभार रसांकुर एवं सूक्ष्मांकुर निकले होते हैं, जो अवशोषण हेतु सतह का क्षेत्रफल बढाते है।
बड़ी आंत
बड़ी आंत के तीन भाग होते है। अन्धनाल, वृहदान्त तथा मलाशय होते हैं। कुछ शाकाहारियों, जैसे- घोड़े तथा खच्चर में अन्धनाल बड़ी होती है तथा सेलूलोस के सूक्ष्मजीवों पाचन का केन्द्र होती है। मानव में अन्धनाल बहुत छोटी, अवशेषी अंग है जो परिशेषिका कहलाती है। यह अपचित खाद्य अवशेष का संग्रहण करके मल बनाती है, जो मलाशय में एकत्र हो जाता है। आहार नाल अग्र भाग में मुख से प्रारंभ होकर पश्च भाग में स्थित गुदा द्वारा बाहर की ओर खुलती है। मुख, मुखगुहा में खुलता है।
भोजन का मानव पाचन तंत्र में पाचन
मानव पाचन तंत्र में पाचन की प्रक्रिया यांत्रिक एवं रासायनिक विध्यिों द्वारा संपन्न होती है। मुखगुहा के मुख्यतः दो प्रकार्य हैं, भोजन का चर्वण और निगलने की क्रिया। लार की मदद से दांत और जिह्ना भोजन को अच्छी तरह चबाने एवं मिलाने का कार्य करते हैं। लार का श्लेषम भोजन कणों को चिपकाने एवं उन्हें बोलस में रूपांतरित करने में मदद करता है। इसके उपरांत निगलने की क्रिया द्वारा बोलस ग्रसनी से ग्रसिका में चला जाता है। बोलस पेशीय संकुचन के क्रमाकुंचन द्वारा ग्रसिका में आगे बढ़ता है।
जठर ग्रसिका अवरोधिनी भोजन के अमाशय में प्रवेश को नियंत्रित करती है। लार में विद्युत अपघट्य (Na+, K+, Cl-, HCO3) और एंजाइम होते हैं। पाचन की रासायनिक प्रक्रिया मुखगुहा में कार्बोहाइड्रेट को जल अपघटित करने वाली एंजाइम टायलिन या लार एमाइलेज की सक्रियता से प्रारंभ होती है। लगभग 30 प्रतिशत स्टार्च इसी एंजाइम की सक्रियता से द्विशर्वफरा माल्टोज में अपघटित होती है। लार में उपस्थित लाइसोजाइम जीवाणुओं के संक्रमण को रोकता है।
पाचक ग्रन्थियाँ
पाचक ग्रन्थियाँ भोजन के पाचन के लिए पाचक रस स्रावित करती हैं। ये चार प्रकार की होती है।
लार ग्रन्थियाँ
लार ग्रन्थियाँ लार उत्पन्न करती है। ये तीन जोड़ी होती हैं। कर्णपूर्व ग्रन्थियाँ, अद्योजिहा ग्रन्थियाँ, अधोजिहा ग्रन्थियाँ।
जठर ग्रन्थियाँ
जठर ग्रन्थियाँ आमाशय में उपस्थित होती है। ये तीन प्रकार की होती हैं। कार्डियक ग्रन्थियाँ क्षारीय श्लेष्म का स्रावित करती हैं।जठर ग्रन्थियाँ क्षारीय श्लेष्म का श्रवण करती हैं। फंडिक ग्रथियॉ इसमें चार प्रकार की कोशिकाएं होती हैं।
यकृत
यकृत मानव पाचन तंत्र की सबसे बड़ी ग्रन्थि होती है। इसके दाई पाली की ओर पित्ताशय होता है, जो यकृत द्वारा स्रावित पित्त रस को संगृहीत करता है। पित्त रस में कोई एन्जाइम नहीं होता है, परन्तु इसमें पित्त लवण तथा पित्त वर्णक बाइलिरूबिन- पीला तथा बाइलिवर्डिल- हरा होते है, जो वसा मानव पाचन तंत्र में पाचन में सहायक होते है।
अग्न्याशय
अग्न्याशय मिश्रित ग्रन्थि अग्न्याशयी रस में वसा, प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रेट का पाचन करने वाले एन्जाइमों का श्रवण करती है।
मानव पाचन तंत्र में पाचित उत्पादों का अवशोषण
अवशोषण वह प्रक्रिया है, जिसमें मानव पाचन तंत्र के पाचन से प्राप्त उत्पाद यांत्रिक म्यूकोसा से निकलकर रक्त या लसीका में प्रवेश करते हैं। यह निष्क्रिय, सक्रिय अथवा सुसाध्य परिवहन क्रियाविध्यिों द्वारा संपादित होता है। ग्लुकोज, ऐमीनो अम्ल, क्लोराइड आयन आदि की थोड़ी मात्रा सरल विसरण प्रक्रिया द्वारा रक्त में पहुंच जाती हैं। इन पदार्थों का रक्त में पहुंचना सांद्रण प्रवणता पर निर्भर है, जबकि फ़्रैक्टोज़ और कुछ अन्य ऐमीना अम्लों का परिवहन वाहक अणुओं जैसे सोडियम आयन की मदद से पूरा होता है।
इस क्रियाविधि को सुसाध्य परिवहन कहते हैं। जल का परिवहन परासरणी प्रवणता पर निर्भर करता है। सक्रिय परिवहन सांद्रण प्रवणता के विरुद्ध होता है। जिसके लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। विभिन्न पोषक तत्वों जैसे ऐमीनो अम्ल, ग्लुकोस और सोडियम आयन का रक्त में अवशोषण इसी क्रियाविधि द्वारा होता है। वसाम्ल और ग्लिसेरॉल अविलेय होने के कारण रक्त में अवशोषित नहीं हो पाते। सर्वप्रथम वे विलेय सूक्ष्म बूंदों में समाविष्ट होकर आंत्रिक म्यूकोसा में चले जाते हैं जिन्हें मिसेल कहते हैं।
ये यहाँ प्रोटीन आस्तरित सूक्ष्म वसा गोलिका में पुनः संरचित होकर अंकुरों की लसीका वाहिनियों में चले जाते हैं। ये लसीका वाहिकाएं अंततः अवशोषित पदार्थों को रक्त प्रवाह में छोड़ देती हैं। पदार्थों का अवशोषण आहारनाल के विभिन्न भागों जैसे- मुख, आमाशय, छोटी आंत और बड़ी आंत में होता है। परंतु सबसे अधिक अवशोषण छोटी आंत में होता है।
मानव पाचन तंत्र के विकार
आंत नलिका का शोथ जीवाणुओं और विषाणुओं के संक्रमण से होने वाला एक सामान्य विकार है।
पीलिया
इसमें यकृत प्रभावित होता है। पीलिया में त्वचा और आंख पित्त वर्णकों के जमा होने से पीले रंग के दिखाई देते हैं।
वमन
यह आमाशय में संगृहीत पदार्थों की मुख से बाहर निकलने की क्रिया है। यह प्रतिवर्ती क्रिया मेडुला में स्थित वमन केंद्र से नियंत्रित होती है। उल्टी से पहले बेचैनी की अनुभूति होती है।
प्रवाहिका
आंत की अपसामान्य गति की बारंबारता और मल का अत्यधिक पतला हो जाना प्रवाहिका कहलाता है। मानव पाचन तंत्र में भोजन अवशोषण की क्रिया घट जाती है।
कब्ज
कब्ज में, मलाशय में मल रुक जाता है और आंत्र की गतिशीलता अनियमित हो जाती है।
अपच
इस स्थिति में, मानव पाचन तंत्र में भोजन पूरी तरह नहीं पचता है और पेट भरा भरा महसूस होता है। अपच एंजाइमों के मुक्त करना में कमी, व्यग्रता, खाद्य विषाक्तता, अधिक भोजन करने, एवं मसालेदार भोजन करने के कारण होती है।
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