वृक्क, मूत्र वाहिनियाँ, मूत्राशय और मूत्रमार्ग सम्मिलित रूप से मानव उत्सर्जन तंत्र बनाते हैं। ब्लड में उपस्थित अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकाला जाना चाहिए। इसके लिए रक्त को छानने की व्यवस्था की आवश्यकता होती है। यह व्यवस्था वृक्क में उपस्थित रक्त कोशिकाओं द्वारा उपलब्ध् की जाती है। जब रक्त दोनों वृक्कों में पहुँचता है, तो इसमें उपयोगी और हानिकारक दोनों ही प्रकार के पदार्थ होते हैं। उपयोगी पदार्थों को रक्त में पुनः अवशोषित कर लिया जाता है। जल में घुले हुए अपशिष्ट पदार्थ मूत्र के रूप में पृथक कर दिए जाते हैं। वृक्कों से, मूत्र वाहिनियों से होता हुआ मूत्र मूत्राशय में जाता है।
उत्सर्जन तन्त्र
उपापचायी अशिष्ट पदार्थो के शरीर से बाहर निकलने की प्रक्रिया को उत्सर्जन कहते है। अपशिष्ट पदार्थो पर निर्भरता के अनुसार नाइट्रोजन उत्सर्जन निम्नलिखित प्रकार का होता है।
1. अमोनिया उत्सर्जन
एक प्रकार का उत्सर्जन है, जिसमें नाइट्रोजन का उत्सर्जन मुख्यतया अमोनिया के रूप में होता है। उदाहरण- जलीय कशेरूकी, अस्थिल मछलियॉ तथा उभयचर।
2. यूरिया उत्सर्जन
नाइट्रोजन का यूरिया के रूप में उत्सर्जन यूरिया उत्सर्जन कहलाता है। अमोनिया, यकृत में CO2 के साथ मिलकर यूरिया बनाता है। उदाहरण- स्तनधारी, मानव, मेंढक, टोड।
3. यूरिक अम्ल उत्सर्जन
नाइट्रोजन का यूरिक अम्ल के रूप में उत्सर्जन यूरिक अम्ल उत्सर्जन कहलाता है। उदाहरण- पक्षी, सरीसृप तथा बहुत से कीट।
4. अमीनो अम्ल उत्सर्जन
प्रोटीन के विघटन द्वारा अमीनो अम्ल बनते है। अमीनो अम्लों के उत्सर्जन को अमीनोटेलिक उत्सर्जन कहते हैं। उदाहरण- इकाइनोडमेंटा, मोलस्का।
मानव उत्सर्जन तंत्र
मानव उत्सर्जन तंत्र में एक जोड़ी वृक्क, एक जोड़ी मूत्रवाहिनी, एक मूत्राशय और मूत्र मार्ग सम्मिलित हैं। प्रत्येक वृक्क में एक मिलियन नलिकाकार संरचनाएं वृक्काणु होते हैं। वृक्काणु वृक्क की क्रियात्मक इकाई है। मानव में वृक्क मुख्य उत्सर्जन अंग होता है एवं मूत्रवाहिनी, मूत्राशय एवं मूत्रमार्ग मानव उत्सर्जन तंत्र के सहायक अंग होते है।
मानव उत्सर्जन तंत्र के अंग
मानव उत्सर्जन तंत्र के अंग निम्लिखित है
1. वृक्क
ये एक जोड़ी, बीन के आकार के तथा उदर में उपस्थित होती है। प्रत्येक वृक्क, डायफ्राम के नीचे, कशेरूक दण्ड के पार्श्व में स्थित होता है। वृक्क बाहर की ओर उत्तल तथा अन्दर की ओर अवतल होता है। अवतल सतह पर उपस्थित गड्ढे को वृक्क नाभि या हाइलस कहते हैं। नेफ्रॉन मूत्र का निर्माण कर इसे वृक्क के पेल्विस में डालता है, जहॉ से मूत्रवाहिनी आरम्भ होती है।
मानव के एक वृक्क में 1 मिलियन नेफ्रॉन्स पाई जाती है। इसके दो भाग होते है- बोमेन सम्पुट तथा कुण्डलित नलिका।
A. बोमेन सम्पुट
यह प्याले के आकरी की दोहरी परत वाली रचना है। इसकी भीतरी परत की कोशिकाएं रूपान्तरित होती हैं, जिन्हें पोडोसाइट्स कहते है। ठसमें रूधिर नलिकाओं का जाल होता है, जिसे ग्लोमेरूलस कहते हैं, जो एक साथ मिलकर मैल्पीधियनकाय बनाते है।
B. कुण्डलित नलिका
इसके तीन भाग होते है
- निकटस्थ कुण्डलित नलिका
- हेनले लूप-पतली अवरोही तथा मोटी आरोही भुजा।
- दूरस्थ संवलन कुण्डलित नलिका-जो संग्रहण नलिका में खुलती है।
2. मूत्रवाहिनी
ये पेशीय नली वृक्क के हाइलम से निकलती है। मूत्र मूत्रवाहिनी में रीनल पेल्विस के द्वारा प्रवेश करता है।
3. मूत्राशय
यह थैलीनुमा संरचना है, जो मूत्र को एकत्र करती है। यह पक्षियों में अनुपस्थित होता हैं। वृक्क द्वारा निर्मित मूत्र अंत में मूत्राशय में जाता है और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र द्वारा ऐच्छिक संकेत दिए जाने तक संग्रहित रहता है। मूत्राशय में मूत्र भर जाने पर उसके फैलने के फलस्वरूप यह संकेत उत्पन्न होता है। मूत्राशय भित्ति से इन आवेगों को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में भेजा जाता है। केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से मूत्राशय की चिकनी पेशियों के संकुचन तथा मूत्राशयी- अवरोधिनी के शिथिलन हेतु एक प्रेरक संदेश जाता है, जिससे मूत्र का उत्सर्जन होता है। मूत्र उत्सर्जन की क्रिया मूत्रण कहलाती है और इसे संपन्न करने वाली तंत्रिका क्रियाविधि मूत्रण-प्रतिवर्त कहलाती है।
4. मूत्रमार्ग
ये झिल्लीनुमा नली है, जो मूत्र को बाहर निष्कासित करती है। मूत्रमार्ग अवरोधनी मूत्रमार्ग को मल त्यागने के दौरान बन्द रखती है। मूत्र त्यागने की प्रक्रिया को मूत्रण कहते है। मूत्र वाहिनियाँ नली के आकार की होती हैं। मूत्राशय में मूत्र संचित होता रहता है। मूत्राशय से एक पेशीय नली जुड़ी होती है, जिसे मूत्रमार्ग कहते हैं दूसरा सिरा खुला होता है, जिसे मूत्रारंध्र कहते हैं और जिससे मूत्र शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।
मानव उत्सर्जन तंत्र द्वारा उत्सर्जित मानव मूत्र
एक वयस्क व्यक्ति सामान्यतः 24 घंटे में 1 से 1.8 लीटर मूत्र उत्सर्जित करता है। मूत्र में 95% जल, 2.5% यूरिया और 2.5% अन्य अपशिष्ट उत्पाद होते हैं। मूत्र एक विशेष गंध युक्त जलीव तरल है, जो रंग में हल्का पीला तथा थोड़ा अम्लीय (pH-6) होता है। औसतन प्रतिदिन 25-30 ग्राम यूरिया का उत्सर्जन होता है। मानव मूत्र का रंग यूरोक्रोम के कारण पीला होता है।
मानव उत्सर्जन तंत्र का डायलाइसिस
कभी-कभी किसी व्यक्ति के वृक्क काम करना बंद कर देते हैं। ऐसा किसी संक्रमण अथवा चोट के कारण हो सकता है। वृक्क के अक्रिय हो जाने की स्थिति में रक्त में अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा बढ़ जाती है। ऐसे व्यक्ति की अधिक दिनों तक जीवित रहने की संभावना कम हो जाती है। तथापि, यदि कृत्रिम वृक्क द्वारा रक्त को नियमित रूप से छानकर उसमें से अपशिष्ट पदार्थों को हटा दिया जाए, तो उसके जीवन काल में वृद्धि संभव है। इस प्रकार रक्त के छनन की विधि को डायलाइसिस कहते हैं।
मानव उत्सर्जन तंत्र के रोग
विभिन्न अवस्थाएं मूत्र की विशेषताओं को प्रभावित करती हैं। मूत्र का विश्लेषण वृक्कों के कई उपापचयी विकारों और उनके ठीक से कार्य न करने को कुसंक्रिया जैसे रोग निदान में मदद करता है। उदाहरण के लिए मूत्र में ग्लूकोस की उपस्थिति (ग्लाइकोसूरिया) तथा कीटोन काय की उपस्थिति (कीटोनयूरिया), मधुमेह (डाइबिटीज मेलीटस) के लक्षण है।
मानव उत्सर्जन तंत्र MCQ
Question.1- मनुष्यों में सर्वाधिक उत्सर्जन उत्पाद है
1.यूरिक अम्ल
2.अमोनियम क्लोराइड
3.यूरिया
4.अमोनिया
Ans-3. यूरिया
Question.2- मानव के मूत्र का pH कितना होता है?
(1) 8.0
(2) 7.5
(3) 6.00
(4) 9.00
Ans-(3) 6.00
Question.3- मानव मूत्र का पीला रंग किसके कारण होता है?
(1) यूरोक्रोम
(2) बिलिरूबिन
(3) बिलिवर्डिन
(4) जैन्थोफिल
Ans- (1) यूरोक्रोम
Question.4- निम्नलिखित में से किसमें मानव उत्सर्जन तंत्रमें मूत्र के मार्ग को सही क्रम में दर्शाया गया है?
(1) वृक्क-मूत्राशय-मूत्रवाहिनी-मूत्रमार्ग
(2) वृक्क-मूत्रवाहिनी-मूत्राशय-मूत्रमार्ग
(3) वृक्क-मूत्राशय-मूत्रमार्ग-मूत्रवाहिनी
(4) वृक्क-मूत्रमार्ग-मूत्राशय-मूत्रवाहिनी
Ans-(1) वृक्क-मूत्राशय-मूत्रवाहिनी-मूत्रमार्ग
Question.5- यूरिक अम्ल निम्नलिखित में से किसका उत्सर्जी पदार्थ है?
(1) मेंढक, मानव
(2) पक्षी, सर्प
(3) अमीबा, तारा मछली
(4) इनमें से कोई नहीं
Ans-(2) पक्षी, सर्प
Question.6- मानव उत्सर्जन तंत्रके विषय में नीचे दिए गए कथनों का अध्ययन कीजिए।
- जल में घुले अपषिष्ट पदार्थ वृक्कों में मूत्र के रूप में पृथक् कर लिए जाते हैं।
- मूत्राशय में संचित मूत्र, मूत्रमार्ग जिसका दूसरा सिरा मूत्र रन्ध्र से जुड़ा होता है, से होकर बाहर निकाल दिया जाता है।
- मूत्र वाहिनीयों से होता हुआ मूत्र मूत्राशय में जाता है।
- उपयोगी पदार्थो को रूधिर में पुनः अवषोषितकर लिया जाता है।
- उपयोगी और हानिकारक दोनों ही प्रकार के पदार्थो से युक्त रूधिर निस्पन्दन के लिए वृक्कों में पहुचता है।
उपरोक्त कथनों में दी गई प्रक्रियाओं का सही क्रम है
(1) B, D, A, C
(2) E, D, A, B, C
(3) D, E, A, C, B
(4) E, D, A, C, B
Ans- (4) E, D, A, C, B
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