अधिगम वक्र, अधिगम वक्र के प्रकार, उन्नतोदर, नतोदर अधिगम वक्र

व्यक्ति अपने जीवन में नए कार्य सीखता है, बालक भी अध्ययन के समय नई नई बातें सीखते हैं l अधिगम की गति कभी काफी तेज हो जाती है कभी धीमी l सीखने की गति का एक ग्राफ खींचा जाए तो प्राय एक वक्र प्राप्त होता है यही अधिगम वक्र कहलाता है l

अधिगम वक्र के प्रकार

अधिगम के वक्र के प्रकार निम्नलिखित हैं-

1.सरल रेखीय अधिगम वक्र

अधिगम की क्रिया हमेशा एक समान नहीं होती हैl इसमें प्रगति हमेशा नहीं रहती है तथा अधिगम में सरल रेखीय वक्र नहीं बनते हैं l

2.उन्नतोदर अधिगम वक्र

जब सीखने में प्रारंभिक गति तीव्र होती है बाद में वह मंद पड़ जाती है और फिर तीव्रता की ओर अग्रसर होती है तो सीखने का वक्र उन्न्तोदर होता है l

3.नतोदर अधिगम वक्र

जब सीखने की गति प्रारंभिक काल में धीमी रहती है और बाद में सीखने की गति में उन्नति होती है तब जो वक्र बनेगा वह नतोदर प्रकार का होगा l

4.मिश्रित अधिगम वक्र

मिश्रित वक्र अलग से कोई वक्र नहीं है वास्तव में यह नतोदर एवं उन्तोदर वक्र का मिश्रण है l इस प्रकार के वक्र में प्रारंभिक घंटों में गति धीमी रहती है फिर तीव्र हो जाती है इसके बाद धीमी और फिर तीव्र l

अधिगम वक्र के जनक

अधिगम के क्षेत्र में ग्राफ का प्रयोग 1960 में J S Brunner ने किया था। अतः J S Brunner को अधिगम वक्र का जनक भी कहा जाता हैं। ये ग्राफ अधिगम की गति उन्नति को दिखाते हैं।

अधिगम के वक्र की विशेषताएं

  • अधिगम की क्रिया में प्रारंभ में तेजी दिखाई देती है किंतु यह आवश्यक नहीं है। प्रारंभ में तेजी से होने वाली प्रगति को प्रारंभिक तीव्रता कहते हैं।
  • अधिगम के वक्रो से यह स्पष्ट हो जाता है कि अधिगम में प्रगति का रूप स्थाई नहीं होता है। अधिगम की प्रगति अनियमित रूप से होती है।
  • यह वक्र सीखने में किसी स्थान पर बहुत कम उन्नति प्रकट करते हैं, यह स्थान सीखने के पठार कहलाते हैं।
  • अधिगम के वक्र इस बात को प्रकट करते हैं कि सीखने की क्रिया में एक ऐसी अवस्था या शारीरिक सीमा आ जाती है जिसके बाद व्यक्ति सीखने में कोई उन्नति नहीं कर पाता l

अधिगम वक्र में पठार

किसी बात को सीखते समय प्रारंभिक गति तेज भी हो सकती है या धीमी भी कुछ समय बाद ऐसा भी होता है l जब हमारी गति रुक जाती है फिर हम सीख नहीं पाते ऐसा कई कारणों से हो सकता है, जैसे थकान अरुचि सिरदर्द आदि l सीखने की इस पठार की अवस्था जिसमें सीखने की उन्नति रुक जाती है l सीखने में पठार के रूप में जाना जाता है l

अधिगम वक्र में पठार आने का समय

सीखने में पठार कब एवं कितने समय में आएगा यह निश्चित नहीं रहता कोई व्यक्ति जल्दी सीख जाता है और कोई देर सेअधिगम में पठार के कारण अधिगम में पठार के कारण निम्नलिखित हैं

  • प्रेरणा का अभाव
  • शारीरिक सीमा
  • प्राप्त ज्ञान को स्थाई बनाने के लिए
  • कार्य की गहनता
  • सीखने की अनुचित विधियां
  • रुचि में कमी
  • थकान निराशा जिज्ञासा की कमी

अधिगम का स्थानान्तरण

स्थानांतरण का सामान्य अर्थ होता है कि किसी वस्तु अथवा व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रतिष्ठित करना और अधिगम के स्थानांतरण से तात्पर्य होता है किसी सीखे हुए ज्ञान अथवा क्रिया का अन्य परिस्थितियों में उपयोग करना दूसरे शब्दों में किसी एक विषय या परिस्थिति में सीखे गए ज्ञान का किसी अन्य विषय या परिस्थिति में ज्ञान अर्जित करने में उपयोग करना ही अधिगम का स्थानांतरण कहलाता है l

अधिगम का स्थानान्तरण के प्रकार

अधिगम स्थानान्तरण के निम्नलिखित प्रकार है

1.सकारात्मक स्थानान्तरण

जब पूर्व ज्ञान, अनुभव या प्रशिक्षण नये प्रकार के कार्य को सीखने में सहायता देता है तो उसे सकारात्मक स्थानान्तरण कहते है। उदाहरण- स्कूटर चलाने वाले व्यक्ति को मोटर बाइक चलाने के कठिनाई नहीं होती, बल्कि अपने पूर्व अनुभव से सहायता मिलती है।

2.नकारात्मक स्थानान्तरण

जब पूर्व ज्ञान, अनुभव या प्रशिक्षण नये प्रकार के कार्य को सीखने में कठिनाई उत्पन्न करते हैं तो उसे नकारात्मक स्थानान्तरण कहते हैं।

3.शून्य स्थानान्तरण

जब किसी कार्य को करने की योग्यता अथवा ज्ञान का अन्य किसी कार्यो को करने की योग्यता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता हैं, तो उसे शून्य स्थानान्तरण कहते है। उदाहरण- साइकिल के मैकेनिक को स्कूटर ठीक करने में कठिनाई होती है।

4.क्षैतिज स्थानान्तरण

जब किसी परिस्थिति में अर्जित ज्ञान, अनुभव अथवा प्रशिक्षण का प्रयोग व्यक्ति समान परिस्थिती में करता है तो उसे क्षैतिज स्थानान्तरण कहते हैं।

5.ऊर्ध्व स्थानान्तरण

जब किसी परिस्थिति में अर्जित ज्ञान अनुभव अथवा प्रशिक्षण का उपयोग प्राणी के द्वारा उच्च स्तरीय परिस्थितियों के अध्ययन में किया जाता है तो इसे ऊर्ध्व स्थानान्तरण कहते हैं।

6.द्विपार्श्विक स्थानान्तरण

जब मानव शरीर के एक भाग को दिये गये प्रशिक्षण का स्थानान्तरण दूसरे भाग में होता है तो उसे द्विपार्श्विक स्थानान्तरण कहते हैं। उदाहरण- दाए हाथ से लिखने की योग्यता का लाभ बाए हाथ से लिखने में करना।

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