लिपि किसे कहते हैं उदाहरण सहित लिखिए

लिखित भाषा में मूल ध्वनियों के लिए जो चिन्ह मान लिए गए हैं, वह वर्ण कहलाते हैं पर जिस रूप में यह लिखे जाते हैं उसे लिपि कहते हैं।

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लिपि की परिभाषा

आचार्य किशोरी दास वाजपेई के अनुसार ध्वनि चित्रों की बनावट को लिपि कहते हैं।

लिपि की उत्पत्ति

भाषा की उत्पत्ति की भॉति लिपि की भी उत्पत्ति विवादास्पद है कोई इसे ईश्वर की देन मानता है। तो कोई इसे आवश्यकता के रूप में जन्मी मानव निर्मित। सत्य यही है कि मनुष्य ने अपनी आवश्यकतानुसार लिपि को स्वयं जन्म दिया। जब-जब व्यक्त भावों, विचारों आदि को सुरक्षित रखने की आवश्यकता मनुष्य को पड़ी, वह प्रयत्न कर लिपि का विकास करता रहा।

भाषा लिपि से पहले विकसित हुई भाषा की भाव की अभिव्यक्ति का माध्यम है यहि लिपि को भाषा के पूर्व जन्मा माने तो तो भी प्रारम्भ में भले ही यह भावाभिव्यक्ति का माध्यम रही हो। परन्तु कालान्तर में यह भाषा से जुड गयी वर्तमान लिपियों कि शुरुआत लिपियों कि निश्चय ही चित्रात्मकता से हुई है। यदि लिपि भाषा की अनुवर्ती है तो भाव-भाषा लिपि विकास रूप सामने आता है।

लिपि का विकास

भाषा के उद्भव के बारे में जिस प्रकार प्राचीन मान्यता यह है कि इसे ईश्वर ने बनाया था उसी तरह संसार के अधिकांश धार्मिक व्यक्ति यही मानते हैं कि लिपि का भी ईश्वर या देवता ने ही बनाया है। इसी धारणा के आधार पर भारतीय धार्मिक व्यक्ति ब्रह्मा की कृति मानते है और इसलिए प्राचीन लिपि को ब्राह्मी के नाम से पुकारते है। ऐसे ही मिश्र निवासी अपनी लिपि का निर्माता थाथ या आइसिस देवता को माने है। बेविलोनियों के निवासियों की धारण है कि नेबो ने लिपि का निर्माण किया था।

लिपि सम्बन्धि यह विचार अन्धविश्वास पर आधारित है। वास्तविकता यह हैं कि मानव को जब अपनी भाषा में व्यक्त भावों विचारों आदि को सुरक्षित रखनें रखने की आवश्यकता का अनुभव हुआ तभी लिपि का विकास हुआ।

भाषा और लिपि

‘भाषा’ उच्चरित ध्वनि-संकेतों के स्वरूप का नाम है। वहॉ लिपि लिखित ध्वनि-संकेतों के स्वरूप को कहते हैं। भाषा काल और स्थान की दृष्टि से सीमाओं में आबद्ध रहती थी। क्योंकि भाषा तभी सुना जा सकता है। जब कोई वक्ता हमारे सामने उसका उच्चारण करता है। यह वहीं तक सुना जा सकता है। जहॉ तक वक्ता की आवाज पहुंच सके। जबकि लिपि काल और स्थान की सीमाओं को तोड़ देती है। वह किसी भी व्यक्ति के लिखित विचारों एवं भावों को पर्याप्त समय तक सुरक्षित रखती है। भाषा विविध ध्वनियों की समष्टि होती है। जबकि लिपि उन ध्वनियों के चिन्हों, रेखाओं, चित्रों प्रतीकों आदि से सम्पृक्त होती है।

लिपि के विकास की अवस्थाएं

1.चित्र लिपि 2. सूत्रलिपि 3. प्रतीक लिपि 4. ध्वनि लिपि

1. चित्र लिपि किसे कहते हैं

मानवता के प्रारम्भिक काल में मानव को अपने भावों की अभिव्यक्ति के लिए चित्र के अतिरिक्त दूसरा कोई सहारा उपलब्ध नहीं था। इसके प्रमाण- खुदाई एवं गुफाओं में मिलने वाले विभिन्न चित्र संसार की सभी लिपियों को देखने से भी यही आभास होता है कि लेखन का आरम्भ किसी न किसी प्रकार की चित्र लिपि से ही हुआ होगा। प्रारम्भिक अवस्था में जिन चित्रों का प्रयोग होता था वे सरल एवं स्थूल थे, ये चित्र सर्वग्राही तो थे किन्तु इनमें प्रतिकात्मकता का अभाव था। प्रातः काल के लिए उगते हुए सूर्य का चित्र एवं दुख के लिए आंसु बहाती आँखों का चित्र खींच दिया जाता था।

चित्रलिपि के प्रकार

चित्रलिपि के प्रकार निम्नलिखित हैं-

(i) भावमूलक लिपि किसे कहते हैं

भावमूलक लिपि चित्रलिपि का विकसित रूप है। भावलिपि में स्थूल वस्तुओं के अतिरिक्त भावों को भी व्यक्त करते है।

(ii) हिरोग्लाइफिक लिपि किसे कहते हैं

हिरोग्लाइफिक लिपि में अनेक चित्रों का प्रयोग किया जाता है। इसमें कतिपय चित्र विशेष ध्वनियों को व्यक्त करते है। यह चित्रलिपि का ही विकसित रूप है। यदि इस लिपि में लकड़बग्घा लिखना हो तो इसे लकड़ी और बाघ के चित्रों द्वारा प्रकट किया जाता था।

(iii) क्रीट लिपि किसे कहते हैं

मिश्र के उत्तर में क्रीट द्वीप के अन्तर्गत पहले दो प्रकार की लिपियॉ प्रचलित थी। 1.चित्रात्मक 2. रेखात्मक, यद्यपि ये लिपियॉ क्रीट में विकसित हुई थी। तथापि इन चित्रात्मक लिपि का ही प्रभाव था।

(iv) हिटाहाइट लिपि किसे कहते हैं

इसे हिरोग्लाइफिक लिपि भी कहते है। यह लिपि भी मूलतः चित्रात्मक ही थी किन्तु पीछे यह कुछ-कुछ भावात्मक एवं ध्वनात्मक हो गयी। इसमें लगभग 419 चिन्ह इसे कभी बायें से दायें और कभी बायें से दाये लिखा जाता था।

(v) फन्नी लिपि किसे कहते हैं

फन्नी लिपि को क्यूनिफार्म तिकोनी या वाणमुखी नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। क्योकि इसमें त्रिभुजाकार, कोणाकार रेखाओं का प्रयोग होता है। विद्वानों ने इस लिपि का विकास चार हजार ई0 पू0 माना है। भाषा वैज्ञानिको का कहना है। कि यह लिपि पहले सिन्धु घाटी की लिपि की तरह चित्रात्मक ही थी परन्तु बेविलोनियॉ में गिली मिट्टी की टिकियों और इटों पर लिखने के कारण यह धीरे-धीरे तिकोनी रेखाओं से युक्त हो गयी।

2. सूत्रलिपि किसे कहते हैं

लिपि के विकास की यह दूसरी कड़ी है। प्रचीन काल में रस्सी और पेड़ों की छाल आदि में गॉव दे दी जाती थी। व्याकरण या दर्शन शास्त्र के सूत्र भी इसी परम्परा की ओर उन्मुख करते हैं। इस लिपि का सबसे उत्तम उदाहरण पीरु की क्वीपू है। इसकी सूत्र लिपि में भिन्न-भिन्न लम्बाइयॉ, मोटाइयॉ तथा रंगो के सूत लटकाकर भाव प्रकट किए जाते थे। कहीं-कहीं गाँठे भी लगायी जाती थी।

3. प्रतिकात्मक लिपि किसे कहते हैं

लिपि के विकास की यह तीसरी सीढ़ी है। बारात में चलने का निमन्त्रण हल्दी भेजकर, समझौते या आत्मसमर्पण की अभिव्यक्ति, सफेद झण्डा दिखाकर या मृत्यु की सूचना पत्र के एक अंश को फाड़कर हम दूसरों तक पहुँचाते हैं। ये प्रतीक, प्रतीक लिपि ही है।

4. ध्वनिमूलक लिपि किसे कहते हैं

लिपि के विकास की यह सबसे महत्वपूर्ण एवं कड़ी है। अभी तक जितनी लिपियों का जिक्र हो चुका है। उनमें चिन्हों एवं चित्रों की तो भरमार थी। किन्तु नाम के लिए संकेत अत्यल्प थे। किन्तु घाटी की लिपि इसका अपवाद जरूर है। किन्तु उसमें भी पूर्ण रूप से स्पष्ट नहीं हो पाया फिर भी अन्य लिपियों कि अपेक्षा उपयोगी है। मानव ने जब यह महसूस किया कि चित्रों या विभिन्न चिन्हों से काम चलने वाला नहीं है। तो उसका ध्यान ध्वनि चिह्न या वर्णों के आविष्कार की ओर गया। ध्वनि मूलक लिपि का विकास भी दो रूपों में हुआ है।

A.अक्षरातमक लिपि B. वर्णनात्क लिपि

A. अक्षरातमक लिपि किसे कहते हैं

अक्षरात्मक लिपि जिस ध्वनिमूलक लिपि के सभी चिन्ह एक सुर से बोले जाने वाली ध्वनियों के द्योतक होते है। तथा जिसमें एक से अधिक ध्वनियॉ आ सकती हैं उसे अक्षरात्मक कहते है। तात्पर्य यह है कि इस लिपि में चिन्ह अक्षर को व्यक्त करता है, ध्वनि कीनहीं। नागरी लिपि इसका सबसे उत्तम उदाहरण है। क्योंकि क व्यंज्जन ध्वनि में क+अ दो ध्वनियॉ सम्मिलित है। इसी प्रकार को ध्वनि में भी क+ओ दो ध्वनियॉ सम्मिलित हैं। इन घ्वनियों में पहली व्यंज्जन और दूसरी स्वर हैं। अक्षरात्मक लिपि सामान्ययता तो ठीक है वैज्ञानिक दृष्टि से इसमें कमी है।

B. वर्णनात्क लिपि किसे कहते हैं

लिपि विकास की प्रथम सीढ़ी चित्रलिपि है। अंतिम सीढ़ी वर्णनात्मक (ध्वन्यात्मक) लिपि है। इसमें प्रत्येक चिन्ह एक ही ध्वनि या वर्ण को प्रकट करता है। प्रत्येक वर्ण की स्थिति अलग होती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण रोमन लिपि है।

मोहन शब्द को लिजिए MOHAN शब्द इसमें 5 ध्वनियॉ है। इस तरह जहॉ अक्षरात्मक लिपि में मोहन शब्द में 3 अक्षर है। वहीं रोमन लिपि में 5 वर्ण शामिल है। इस तरह ध्वनिमूलक लिपि से अक्षरात्मक लिपि का विकास पहले हुआ है, वर्णनात्मक लिपि का बाद में।

भारत की  प्रमुख लिपियां

1.सिंधु घाटी लिपि

2.खरोस्ट लिपि

3.ब्राह्मी लिपि

4.देवनागरी लिपि

1. सिंधु घाटी लिपि किसे कहते हैं

इसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में मुख्यतया तीन सिद्धान्त हैं।

  • द्रविण उत्पत्ति
  • सुमेर उत्पत्ति
  • असुर उत्पत्ति

द्रवीण उत्पत्ति मूल सिद्धान्त के अग्रकर्ता है। एच0 हेरास तथा जान मार्सल इन लोगों का मत है कि सिन्धु घाटी की सभ्यता द्रविड़ की थी और वे लोग उस लिपि के जनक तथा विकास करने वाले थे। दूसरे मान्यता के विचारकों का कहना है कि सिन्धु घाटी की लिपि द्रविण परिवार से नहीं बल्कि सुमेरी लिपि से उत्पन्न हुई है। तीसरी मान्यता के समर्थकों का कहना है कि सिन्धु घाटी में पहले आर्य निवास करते थे उन्होने इस लिपि का निर्माण किया था। यह एक अत्यन्त प्राचीन लिपि है।

सिंधु घाटी लिपि के प्राचीनतम नमूने हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो से प्राप्त स्थलों पर मिले हैं। डिरिंजर ने इस लिपि को भाव ध्वनिमूलक लिपि कहा है। लेगडेन इसमें 228 हंटर 253 तथा गेट एवं स्थित 396 ध्वनि चिन्ह मानते हैं। इस लिपि में चित्र अक्षरों व ध्वनि अक्षरों का मेल है।

2. खरोष्ठी लिपि किसे कहते हैं

खरोष्ठी लिपि के प्राचीनतम नमूने शाहबाज गढ़ी और मनसेरा में अशोक के अभिलेखों से मिलते हैं। चीनी भाषा के कोष ग्रंथ फ वन सु ली के अनुसार खरोस्ट नामक व्यक्ति के नाम के आधार पर इसे खरोस्ट कहा जाता है। राजबली पांडे के अनुसार खर के ओस्ट के समान वर्णों की आकृति के कारण इसे खरोष्ठ लिपि कहा जाता है। डॉक्टर सुनीति कुमार चटर्जी के अनुसार खारो शोध से खरोष्ठी शब्द बना है। यह लिपि दाएं से बाएं लिखी जाती थी इसमें 37 वर्ण थे इसमें संयोगिता अक्षरों का अभाव था

3. ब्राह्मी लिपी किसे कहते हैं

ब्राह्मी लिपि के प्राचीनतम नमूने पिपराला के स्तूप बस्ती और बड़ली गॉव अजमेर से प्राप्त हुए है। डा0 बूला के अनुसार इसमें 41 अक्षर थे- 9 स्वर एवं 32 व्यजंन थे।

ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति के संबंध में विद्वानों के मत

  1. एडवर्थ थॉमस के अनुसार-द्रविडो द्वारा आविष्कृत
  2. जगत मोहन वर्मा के अनुसार-वैदिक चित्रलिपि से व्युत्पन्न
  3. आर0 श्याम शास्त्री के अनुसार-सांकेतिक चिह्नों से व्युत्पन्न
  4. डा0 राजबली पांडेय के अनुसार-सिंधु घाटी लिपि से विकसित
  5. डाउसन, कनिंघम, लसन के अनुसार-आर्यो की पुरानी चित्रलिपि से
  6. डा0 भोलानाथ तिवारी के अनुसार-हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ों की लिपि से
  7. अल्फ्रेड मूलर, जैम्स, पिन्सेप, सेनार्ट के अनुसार-यूनानी या फोनसी से
  8. डा0 बूलर एवं डैविड डिरिंजर के अनुसार-उत्तरी सामी से
  9. टेलर, डिके, कैनन के अनुसार-दक्षिणी सामी से
  10. वेबर, बेनफे, जेन्सेन के अनुसार-फोनेषीय लिपि से।

ब्राहमी लिपि का विकास क्रम प्रगैतिहासिक काल-बौद्ध काल-गुप्तकाल

4. देवनागरी लिपि किसे कहते हैं

ब्राह्मी लिपि से विकसित नागरी लिपि से ही देवनागरी लिपि की उत्पत्ति हुई है। आर श्याम शास्त्री के अनुसार देवताओं की प्रतिमाओं के बनने के पूर्व उनकी उपासना सांकेतिक चिन्हो द्वारा होती थी जो कई रूप प्रकार के त्रिकोणी यंत्रों आदि के मध्य लिखे जाते थे वे यंत्र देवनगर कहलाते थे और उनके मध्य लिखे जाने वाले अनेक प्रकार के सांकेतिक चिन्ह वर्ण माने जाने लगे इसी से उसका नाम देवनागरी पड़ा।

चीनी लिपि किसे कहते हैं

चीनी लिपि का विकास मिश्री, सुमेरी एवं सिन्धु घाटी की लिपियों के बाद हुआ। इसके विकास के सम्बन्ध में अनेक किवदन्तियॉ प्रचलित है। चीनी भाषा के विश्व कोष में लिखा है कि त्सं-कॉ ने चीनी लिपि का निर्माण किया था। उसने यह लिपि पक्षि के पैरों को देखकर बनायी थी। चीनी लिपि का आरम्भिक रूप चित्र-लिपि के रूप में था। लगभग 5 हजार लिपि चिन्हों का स्मरण रखना रेखओं के भीतर रेखाओं बिन्दुओं का अंकन सहज नहीं।

ब्रेल लिपि किसे कहते हैं

यह दृष्टिबाधित व्यक्तियों के पढ़ने और लिखने की एक बुनियादी प्रणाली है। इस लिपि का विकास 1829 में लुई ब्रेल द्वारा किया जो कि फ़्रांसीसी संगीतकार था। दृष्टिबाधित और जिनकी दृष्टिबहुत कम है पूर्णतया ब्रेल प्रणाली का प्रयोग किया जाता है। ब्रेल लिपि प्रणाली में छात्रों को छूकर और महसूस करके पढ़ना होता है। ब्रेल लिपि 6 डॉट पर बनी होती है। आजकल ब्रेल लिपि को विकसित करने के लिए कम्प्यूटर का प्रयोग किया जा रहा है।

लिपि किसे कहते हैं in Hindi

लिपि किसे कहते हैं हिंदी में

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