सूक्ष्म शिक्षण क्या है, सूक्ष्म शिक्षण के प्रकार, विशेषताएं

सूक्ष्म शिक्षण से सम्बन्धित एक सम्प्रत्यय है जिसका प्रयोग सेवारत एवं सेवापूर्ण स्थितियों में शिक्षकों के व्यावसायिक विकास के लिए किया जाता है। सूक्ष्म शिक्षण शिक्षकों को शिक्षण के अभ्यास के लिए एक ऐसी योजना प्रस्तुत करता है जो कक्षा की सामान्य जटिलताओं को कम कर देता है और जिसमें शिक्षक बहुत बड़ी मात्रा में अपने शिक्षण व्यवहार के लिए प्रतिपुष्टि प्राप्त करता है।

सूक्ष्म शिक्षण की परिभाषा

वी.एम. शोर ने सूक्ष्म शिक्षण की परिभाषा करते हुए कहा, सूक्ष्म शिक्षण कम समय, कम छात्रों तथा कम शिक्षण क्रियाओं वाली प्रविधि है। मैक्लीज तथा अनविन 1970 के अनुसार, सूक्ष्म शिक्षण का साधारणतः प्रयोग संवृत्त दूरदर्शन के द्वारा छात्राध्यापकों को सरलीकृत वातावरण में उसके निष्पादन सम्बन्धी प्रतिपुष्टि तुरन्त उपलब्ध करने की प्रक्रिया के लिए किया जाता है। सूक्ष्म अध्यापन को साधारणतया अभिरूपित अध्ययन का रूवरूप माना जाता है जिसमें सामान्यतया जटिलताओं का न्यूनीकरण कर प्रतिपुष्टि पाठन अभ्यास की अमूर्त परिकल्पना या वास्तविकता कक्षा अध्यापन की प्रक्रिया के आधार पर उपलब्ध की जाती है।

डी.डब्लू. एलन के अनुसार

सूक्ष्म शिक्षण सरलीकृत शिक्षण प्रक्रिया है जो छोटे आकार की कक्षा में कम समय में पूर्ण होती है।

क्लिफट एवं उनके सहयोगी के अनुसार

सूक्ष्म शिक्षण शिक्षक प्रशिक्षण की वह विधि है जो कि शिक्षण अभ्यास को किसी कौशल विशेष तक सीमित करके तथा कक्षा के आकार एवं शिक्षण अवधि को घटाकर शिक्षण को अधिक सरल एवं नियन्त्रित करती है।

सूक्ष्म शिक्षण का इतिहास

सूक्ष्म शिक्षण प्रशिक्षण के क्षेत्र में एक नवीन नियन्त्रित अभ्यास की प्रक्रिया है। इसका विकास स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी में किया गया। सन् 1961 में एचीसन, बुश तथा एलन ने सर्वप्रथम नियंत्रित रूप में संकुचित अध्ययन अभ्यास क्रम प्रारम्भ किये, जिनके अर्न्तगत प्रत्येक छात्राध्यपक 5 से 10 छात्रों को एक छोटा सा पाठ पढ़ाता था और अन्य छात्राध्यपक विभिन्न प्रकार की भूमिका निर्वाह करते थे। बाद में इन लोगों ने वीडियो टेप रिकॉर्डर का प्रयोग भी छात्राध्यापकों के शिक्षण व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाने के लिए करना शुरू कर दिया है।

सूक्ष्म शिक्षण की विशेषताएं

सूक्ष्म शिक्षण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. यह प्रशिक्षण की विधि है।
  2. इसमें प्रशिक्षणार्थियों को शिक्षण व्यवहार से सम्बन्धित प्रतिपुष्टि तत्काल प्राप्त हो जाती है।
  3. प्रशिक्षणार्थियों में शिक्षण कौशल का विकास करता है।
  4. विषय वस्तू का प्रकरण छोटा होता है।
  5. कक्षा का आकार छोटा कर दिया जाता हैं।

सूक्ष्म शिक्षण चक्र

जब तक छात्राध्यापक शिक्षण कौशल विशेष में निपुणता न प्राप्त कर ले। शिक्षण, पृष्ठ पोषण, पुनःपाठ नियोजन, पुनः शिक्षण तथा पुनः पृष्ठ पोषण के पाँचों पदक्रमों को मिलाकर एक चक्र सा बन जाता है जो तब तक चलता रहता है जब तक उसे शिक्षण कौशल विशेष पर पूर्ण निपुणता न प्राप्त हो जाये। यही चक्र, सूक्ष्म शिक्षण चक्र कहलाता है।

  1. पाठ योजना निर्माण- सबसे पहले पाठ योजना का निर्माण किया जाता है।
  2. शिक्षण- पाठ योजना के बाद 5-10 मिनट तक 5-10 छात्रों की कक्षा को पढ़ाया जाता है।
  3. प्रतिपुष्टि- प्रतिपुष्टि के लिए 5-6 मिनट का समय दिया जाता है, जिसमें छात्राध्यापक को छात्रों और अध्यापक द्वारा प्रतिपुष्टि प्रदान किया जाता है।
  4. पुनः नियोजन- प्राप्त प्रतिपुष्टि के आधार पर छात्राध्यापक द्वारा पुनः पाठ योजना का निर्माण किया जाता है।
  5. पुनः शिक्षण- पुनः निर्मित पाठयोजना का पुनः शिक्षण किया जाता है।
  6. पुनः प्रतिपुष्टि- छात्राध्यापक को पुनः प्रतिपुष्टि प्राप्त होती है।

सूक्ष्म शिक्षण का भारतीय प्रतिमान

भारतवर्ष में विशेष रूप से एनसीआरटी तथा सीएएसई एवं इन्दौर विश्वविद्यालय में किये गये प्रयासों के फलरूवरूप् सूक्ष्म शिक्षणका भारतीय प्रतिमान विकसित किया गया। इसकी निम्नलिखित विशेषतायें है-

1. सूक्ष्म शिक्षण में महॅगी सामग्री (जैसे- वीडियो, क्लोज्ड सर्किट टी.वी आदि) के स्थान पर कथन तथा चर्चा विधि का प्रयोग किया गया है।

2. विदेशी निरीक्षण तथा प्रतिपुष्टि की महॅगी सामग्री के स्थान पर इसमें प्रशिक्षित निरीक्षकों द्वारा निरीक्षण तथा प्रतिपुष्टि को स्थान दिया गया हैं।

3. इसमें सूक्ष्म शिक्षण सत्र अनुरूपित सत्र अनुरूपित परिस्थितियों में सम्पन्न किया जाता।

4. सूक्ष्म शिक्षण के इस भारतीय प्रतिमान में स्तर निर्धारण तथा शिक्षण वृत्त निम्नांकित प्रकार से किया जाता है-

  • छात्रों की संख्या- 5 से 10 तक
  •  छात्रों के प्रकार- वास्तविक स्कूल छात्र या बी.एड. छात्र
  •  निरीक्षण व प्रतिपुष्टि- प्राध्यापक या साथी बी.एड. छात्र
  •  पाठ की अवधि- 6 मिनट
  •  कौशलों की संख्या- एक समय में एक कौशल
  •  विषय वस्तु- एक शिक्षण बिन्दु
  •  कुल अवधि- 36 मिनट

5. सूक्ष्म शिक्षण के भारतीय प्रतिमान में सूक्ष्म शिक्षण चक्र की अवधि 36 मिनट होती है। इसका समय विभाजन निम्नांकित प्रकार से दर्शाया गया है-

  • शिक्षण- 6 मिनट
  • प्रतिपुष्टि- 6 मिनट
  • पुनःयोजना- 12 मिनट
  • पुनःशिक्षण- 6 मिनट
  • पुनःप्रतिपुष्टि- 6 मिनट
  • कुल समय- 36 मिनट

6. यह प्रतिमान कम खर्चीला तथा ज्यादा लचीला होता है।

7. भारतीय प्रतिमान में कौशलों के समन्वय करने को भी समुचित स्थान दिया गया है।

सूक्ष्म शिक्षण के लाभ

सूक्ष्म शिक्षण के लाभ निम्नलिखित है-

  1. शिक्षण प्रक्रिया सरल होती है।
  2. छात्राध्यापक का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन किया जाता है।
  3. यह कक्षा-शिक्षण की जटिलताओं को कम करता है।
  4. छात्राध्यापकों में आत्मविश्वास जागृत करता है।
  5. कम समय में अधिक सिखाना।
  6. निरीक्षक, छात्राध्यपक के परामर्शदाता के रूप में कार्य करता है।
  7. छात्राध्यापक क्रमशः अपनी योग्यातानुसार शिक्षण कौशलों पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हुए उन्हें विकसित करता है और सीखने का प्रयत्न करता है।
  8. प्रतिपुष्टि सम्पूर्ण तथा सभी दृष्टिकोणों को अंगीकार करती है।
  9. मूल्यांकन में छात्राध्यपक को अपना पक्ष रखने का पूर्ण अधिकार होता है और मूल्यांकन चरण में उसे सक्रिय रखा जाता है ।
  10. सूक्ष्म शिक्षण विधि के माध्यम से छात्राध्यपक को विद्यालय में सीधा पढाने जाने की अपेक्षा छोटी कक्षा, कम छात्र तथा छोटी पाठ-योजना से अध्यापन कार्य सिखया जाता है जो छात्राध्यापक के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होता है।

सूक्ष्म शिक्षण के दोष

सूक्ष्म शिक्षण के दोष निम्नलिखित है –

  1. एक समय में एक शिक्षण कौशल का विकास होता है। फलस्परूप बाद में उनमें एकीकरण करना कठिन होने लगता है।
  2. इसमें समय अधिक लगता है।
  3. यह सीमा से ज्यादा नियंत्रित तथा संकुचित शिक्षण की ओर ले जाती है।
  4. यह शिक्षण को कक्षा कक्षगत शिक्षण से दूर ले जाती है।
  5. इसमें प्रतिपुष्टि एकदम छात्राध्यपक को मिलना मुश्किल होता है।
  6. छात्राध्यापक को शिक्षण कौशल दक्षता प्राप्त करने के लिए उचित प्रेरणा का अभाव रहता है।

सूक्ष्म शिक्षण के उपयोग

सूक्ष्म शिक्षण विधि में शिक्षण प्रक्रिया से विभिन्न पक्षों का ध्यान रखकर उनका उपयोग किया जाता है। इस विधि में सिद्धान्त ओर व्यवहार में एकीकरण होता है। अंश से पूर्ण सिद्धान्त के आधार पर शिक्षण कला में दक्षता प्रदान करने के लिए यह विधि उपयोगी है रामदेव कथूरिया 1979 ने सूक्ष्म शिक्षण के निम्नांकित उपयोग बताये है-

  1. सूक्ष्म शिक्षण से व्यावसायिक परिपक्वता विकसित होती है।
  2. सूक्ष्म शिक्षण से छात्राध्यापकों को शिक्षण प्रक्रिया पूर्ण रूप् से स्पष्ट हो जाती है और वे अपने शिक्षण कार्य को भली भॉति समझ लेते है।
  3. सूक्ष्म शिक्षण के द्वारा छात्राध्यापक शिक्षण कौशलों पर पूर्ण अधिकार प्राप्त कर लेते है। फलरूप् वे कम समय में वॉछित कौशल का कुशल उपयोग करने में समक्ष हो जाते है।
  4. सूक्ष्म शिक्षण में छात्राध्यापकों को सुव्यवस्थित, वस्तुनिष्ठ, विषिष्ट एवं त्वरित पृष्ठ पोषण प्राप्त होता है।
  5. सूक्ष्म शिक्षण में शिक्षण कौशलों का अभ्यास वास्तविक जटिल परिस्थितियों की अपेक्षा अधिक सरल परिस्थितियों में कराया जाता है।
  6. सूक्ष्म शिक्षण में छात्राध्यापकों के व्यक्तिगत विभिन्नता पर पूर्ण ध्यान प्रदान किया जाता है।
  7. सूक्ष्म शिक्षण छात्राध्यापकों की व्यवहार परिवर्तन में अधिक प्रभावी होता है।

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