ऊष्मा किसे कहते हैं,ऊष्मा के प्रकार,ऊष्मा और थर्मामीटर

ताप में अंतर के कारण एक निकाय से दूसरे निकाय में अथवा किसी निकाय के एक भाग से उसके दूसरे भाग में ऊर्जा के स्थानांतरण को ऊष्मा कहते हैं। किसी वस्तु में उसके अणुओं की अनियमित गति के कारण उत्पन्न ऊष्मीय ऊर्जा कहलाती है। यह वस्तु की आन्तरिक ऊर्जा से सम्बन्धित होती है।

ऊष्मा और ताप

किसी तप्त अथवा ठण्डी वस्तु की तुलना, जिस कारक से करते हैं वह ताप कहलाता है। ऊष्मा एक अदिश राशि है। इसका SI मात्रक जूल होता है। CGS पद्धति में इसका मात्रक कैलोरी है। 1 ग्राम जल का ताप 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को एक कैलोरी कहते हैं।

1 कैलोरी= 4.189 जूल

1 किलोकैलोरी= 1000 कैलोरी

तापमापी

तापक्रम पैमाना बनाने के लिए, दो नियत बिन्दु लिए जाते है। प्रथम बिन्दु जल का हिमांक बिन्दु होता है, इसे न्यूनतम नियत बिन्दु भी कहते है। दूसरा नियत बिन्दु जल का क्वथनांक बिन्दु होता है। ताप मापन के लिए जिस उपकरण का उपयोग कहते हैं, तापमापी  कहलाता है। तापमापी मुख्यतया निम्नांकित चार प्रकार के होते है।

1.सेल्सियस थर्मामीटर

इस स्केल में न्यूनतम नियत बिन्दु 0º  लिया जाता है तथा उच्चतम नियत बिन्दु 100º लिया जाता है। इन बिन्दुओं के बीच की दूरी को 100 बराबर भागों में विभाजित कर दिया जाता है। प्रत्येक भाग 1 डिग्री सेल्सियस व्यक्त करता है।

2.केल्विन थर्मामीटर

जल के त्रिक बिन्दु की इस स्केल का शून्य 273 केल्विन किया जाता है तथा माप बिन्दु 373 केल्विन लिया जाता है। इन दोनां बिन्दुओं के मध्य की दूरी 100 बराबर भागों में विभाजित कर दी जाती है। प्रत्येक भाग 1 केल्विन व्यक्त करता है।

3.फारेनहाइट थर्मामीटर

इस स्केल में न्यूनतम बिन्दु 32º तथा उच्चतम बिन्दु 212º लिया जाता है। इन बिन्दुओं के मध्य दूरी के 180 बराबर भागों में विभक्त कर दिया जाता है। प्रत्येक भाग 1º F व्यक्त करता है। तापक्रम में 1º F का परिवर्तन सेल्सियस स्केल पर 1 ºC के परिवर्तन से कम होता है।

4.रूमर थर्मामीटर

इस थर्मामीटर में न्यूनतम बिन्दु 0º R तथा उच्चतम बिन्दु 80º R होता है। इन बिन्दुओं के मध्य दूरी 80 बराबर भागों में विभक्त होती है।

थर्मामीटर

तापक्रम के मापन के लिए जिस उपकरण का उपयोग करते हैं, वह थर्मामीटर कहलाता है। विभिन्न प्रकार के थर्मामीटर विज्ञान प्रयोगशालाओं में उपयोग में लिए जाते हैं। सबसे अधिक पारे से बने थर्मामीटर का उपयोग प्रयोगशालाओं तथा डॉक्टरों द्वारा किया जाता है। थर्मामीटर में पारे के प्रयोग के विषय में अनेक चिंताएँ हैं। पारा एक विषाक्त पदार्थ है और यदि थर्मामीटर टूट जाए, तो इसका निपटान अत्यंत कठिन है। आजकल अंकीय थर्मामीटर (डिजिटल थर्मामीटर) उपलब्ध् हैं जिनमें पारे का उपयोग नहीं होता।

क्लीनिकल थर्मामीटर

क्लीनिकल थर्मामीटर का उपयोग शरीर का तापक्रम नापने के लिए किया जाता है। क्लीनिकल थर्मामीटर में एक पतली कॉच की नली होती है, जिसके एक सिरे पर पतले कॉच के बल्ब में पारा भरा रहता है। इस नली पर तापक्रम अंकों में अंकित होते है। सामान्य स्थितियों में मनुष्य का तापक्रम 30ºC से व 42ºC से अधिक नहीं होता है। यही कारण है कि क्लीनिकल थर्मामीटर की परास 35ºC से 42ºC तक ही होती है।

प्रयोगशाला थर्मामीटर

 प्रयोगशाला थर्मामीटर की परास -10 से 110 होती है। प्रयोगशाला थर्मामीटर को सदैव सीधा ऊर्ध्वाधर रखना चाहिए। इसमें पारे को यथावत् रखने के लिए घुमाव नहीं होता है

ऊष्मा का संचरण

ऊष्मा सदैव उच्च ताप वाली वस्तु से निम्न ताप वाली वस्तु की ओर प्रवाहित होती है। ऊष्मा का एक स्थान से दूसरे स्थान में स्थानान्तरण तीन विधियों द्वारा होता हैं

1.चालन

वस्तु के विभिन्न भागों मं तापान्तर के कारण, वस्तु के ऊॅचे ताप वाले कण अपेक्षाकृत कम ताप वाले कणों को परस्पर सम्पर्क से ऊष्मा देते हैं। ऊष्मा के संचरण की इस प्रक्रिया में वस्तु के कण अपने स्थान से नहीं हटते।

2.संवहन

ऊष्मा संचालन की वह विधि जिसमें ऊष्मा द्रव्य कणों की गति द्वारा स्थानान्तरित होती है, संवहन कहलाती है। संवहन में किसी द्रव अथवा गैस के अणुओं द्वारा ऊष्मा अवषोषित की जाती है, यह अणु अपने स्थान से ऊपर की ओर गति करते है जैसे

1.समुद्री हवाएँ- दिन के समय पृथ्वी की सतह से तप्त हवाएँ समुद्र की ओर प्रवाहित होती है तथा समुद्र से ठण्डी हवाएँ पृथ्वी की ओर संचारित होती है ये हवाएँ समुद्री हवाएँ कहलाती है।

2.पृथ्वी हवाएँ- रात्रि में ठण्डी हवाएँ पृथ्वी की सतह से समुद्र की ओर प्रवाहित होती हैं, यही हवाएँ पृथ्वी हवाएँ कहलाती है।

3.विकिरण

ऊष्मा संचरण की वह विधि जिसमें ऊष्मा का संचरण विद्युत चुम्बकीय तरंगों के रूप में माध्यम के ताप को परिवर्तित किए बिना होता है, विकिरण कहलाती है। ऊष्मा संचरण की यह सबसे तीव्र विधि है। सूर्य से ऊष्मा की मात्रा वस्तु के रंग पर निर्भर करती है। गहरे रंग की वस्तु अधिक विकिरणों का अवशोषण करती है जबकि हल्के रंग की वस्तुओं द्वारा अवशोषित विकिरणों की मात्रा कम होती है। यही कारण है कि गर्मियों में हम हल्के रंग के कपड़े पहनते है।

ऊष्मा का स्थानांतरण

जो पदार्थ अपने से होकर ऊष्मा को आसानी से जाने देते हैं उन्हें ऊष्मा का चालक कहते हैं। इनके उदाहरण हैं, ऐलुमिनियम, आयरन (लोहा) तथा कॉपर (ताँबा)। जो पदार्थ अपने से होकर ऊष्मा को आसानी से नहीं जाने देते, उन्हें ऊष्मा का कुचालक कहते हैं।

अवस्था परिवर्तन

सामान्य रूप में द्रव्य की तीन अवस्थाएँ हैं: ठोस, द्रव तथा गैस। इन अवस्थाओं में से किसी एक अवस्था से दूसरी अवस्था में संक्रमण को अवस्था परिवर्तन कहते हैं। दो सामान्य अवस्था परिवर्तन ठोस से द्रव तथा द्रव से गैस (तथा विलोम) हैं। ये परिवर्तन तब ही हो सकते हैं जबकि पदार्थ तथा उसके परिवेश के बीच ऊष्मा का विनिमय होता है।

ठोस से द्रव में अवस्था परिवर्तन को गलन (अथवा पिघलना) तथा द्रव से ठोस में अवस्था परिवर्तन को हिमीकरण कहते हैं। यह पाया गया है कि ठोस पदार्थ की समस्त मात्रा के पिघलने तक ताप नियत रहता है अर्थात् ठोस से द्रव में अवस्था परिवर्तन की अवधि में पदार्थ की दोनों अवस्थाएँ ठोस तथा द्रव तापीय साम्य में सहवर्ती होती हैं। वह ताप जिस पर किसी पदार्थ की ठोस तथा द्रव अवस्थाएँ परस्पर तापीय साम्य में होती हैं उसे उस पदार्थ का गलनांक कहते हैं। यह किसी पदार्थ का अभिलक्षण होता है। यह दाब पर भी निर्भर करता है। मानक वायुमण्डलीय दाब पर किसी पदार्थ के गलनांक को प्रसामान्य गलनांक कहते हैं।

ऊष्मीय प्रसार

जब किसी पदार्थ को गर्म किया जाता है, तो उसका ताप बढ़ने से उसके अनेक भौतिक गुणों में परिवर्तन हो जाता है। इनमें से एक महत्वपूर्ण प्रभाव पदार्थ के आकार में वृद्धि हो जाना है। इसी को पदार्थ का ऊष्मीय प्रसार कहते है। ऊष्मा लेने या देने से पदार्थ की मात्रा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। कुछ पदार्थ जैसे- बर्फ, ढलवॉ लोहा आदि पदार्थो को गर्म करने पर इनका आयतन घट जाता है। सिल्वर आयोडाइड को 80ºC से 140ºC तक गर्म करने पर इसका आयतन भी घट जाता है।

Leave a comment