शिक्षण विधियाँ, प्रभुत्ववादी और प्रजातांत्रिक शिक्षण विधियाँ

शिक्षण प्रक्रिया एक जटिल विषय है। कक्षा में जाने से पूर्व शिक्षक योजना बनाता है कि उसे कक्षा में क्या पढ़ना है? योजना के पश्चात् वह सोचता है कि विषय वस्तु को शिक्षार्थियों तक सुलभता से कैसे पहॅुचाया जा सकता है? इस प्रश्न के उत्तर को ही शिक्षण विधियाँ कहते हैं। कुशल एवं उत्तम शिक्षण के लिए शिक्षक को कुछ विधियों का प्रयोग करना पड़ता है। विधियाँ शिक्षण में बहुत उपयोगी होती है। शिक्षण विधियाँ का प्रयोग शिक्षण की विधियों के अर्न्तगत आता है। विभिन्न शिक्षण विधियाँ भिन्न-भिन्न अवसरों पर प्रयोग में लायी जाती हैं। वस्तुतः शिक्षण विधियाँ का अभिप्राय ज्ञानार्जन को प्रभावशाली, बोधगम्य, सरल एवं रोचक बनाना होता है। यह शिक्षण विधियाँ को महत्वपूर्ण बनाती है।

शिक्षण विधियाँ के प्रकार

शिक्षण विधियाँ दो प्रकार की होती है

1.प्रभुत्ववादी शिक्षण विधियाँ

  • व्याख्यान विधि
  • प्रदर्शन विधि
  • व्यक्तिगत निर्देशन अनुवर्ग
  • अभिक्रमित अनुदेशन

2.प्रजातांत्रिक शिक्षण विधियाँ

  • प्रश्नोत्तर विधि
  • सामूहिक परिचर्चा विधि
  • अन्वेषण विधि
  • प्रोजेक्ट विधि
  • ऐतिहासिक खोज विधि

प्रमुख शिक्षण विधियाँ

प्रमुख शिक्षण विधियाँ निम्नलिखित है-

1. प्रश्नोत्तर विधि

जिज्ञासा मानव स्वभाव की पहचान है। सदियां से मानव ने अपनी जिज्ञासा को शान्त करने के लिए नित नये प्रयोग किए और आविष्कारों से ज्ञान जगत को समृद्ध किया। जिज्ञासा ही प्रश्न पूछने का मूल रूप है। शिक्षण कार्य की शुरूआत प्रश्नविधि से की जाये तो शिक्षक अपनी समस्त शिक्षण योजना को नियोजित स्वरूप दे सकता है। वास्तव में इस विधि का जन्मदाता सुकरात हो कहा जाता है। सुकरात ने प्रश्नोत्तर विधि इसके तीन सोपान बताये है।

  • निरीक्षण
  • अनुभाव
  • परीक्षण

2. विवरण विधि

शिक्षण की ऐसी विधि जिसमें पाठ्यवस्तु, प्रसंग, घटना स्थान का सरल भाषा मे कथन किया जाता है इसलिए इसे कथन विधि भी कहते हैं। इसमें अज्ञात से ज्ञात की स्थिति की ओर अग्रसर होते है। उदाहरण, विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों के बारे में बताना- कुतुबमीनार, बुलन्द दरवाजा, ताजमहल, आदि के बारे में बताना कि वे कहॉ स्थित है, किसने बनवाया, किस लिए प्रसिद्ध हैं?

3. वर्णन विधि

शिक्षण की इस विधि में विषय वस्तु का विस्तार से कथन किया जाता है ताकि छात्रों को पाठ अच्छी तरह से समझ में आ जाये। इस विधि में हालाकि शिक्षक ही ज्यादा सक्रिय रहता है किन्तु यदि रूचिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया जोय तो छात्र भी सक्रियता से भाग लेते हैं और सम्प्रेषण प्रभावी हो जाता है।

4. व्याख्या विधि

किसी भी विषयवस्तु का गहन ढंग से विश्लेषण करना व्याख्या कहलाता हैं। व्याख्या विधि विधि का प्रयोग ज्यादातर जटिल विषयों को समझाने के लिए तथा उच्च स्तर पर किया जाता है। उदाहरण के तौर पर समास को लें। इसे समझाना हो तो समास दो शब्दों से मिलकर बना है सम+अस, सम का अर्थ होता है- समीप और अस् का अर्थ बैठना। जिस क्रिया में संक्षेपीकरण किया जाये तो, दो या दो से अधिक शब्दों को मिलाकर लिखा जाये उसे समासिक पद कहते है।

5. स्पष्टीकरण विधि

किसी वस्तु, विषय, घटना को अच्छी तरह समझाना स्पष्टीकरण कहलाता है। स्पष्टीकरण विधि विधि को उद्घाटन विधि भी कहा जाता है। यह विधि ज्यादातर जटिल विषयों को सरल रूप से बोधगम्य बनाने के काम आती है। शिक्षण को चाहिए कि पाठ्यवस्तु के प्रमुख पक्षों का चयन कर लें और उसके बारे में प्रत्येक बातों को प्रकाशित करें। इसके लिए चित्रों, मॉडलों, श्यामपटट् लेखन को माध्यम बनाया जाना चाहिए। स्पष्टीकरण विधि से शिक्षण की सफलता इस बात में निहित है कि शिक्षक को अपने विषय का पूर्ण ज्ञान हो ताकि उसे समग्र रूप में अधिगमकर्ता के समक्ष प्रस्तुत कर सकें।

6. कहानी कथन विधि

एक राजा था, एक राजकुमार थी, एक परी थी, जैसे वाक्यों से शुरू होने वाली कहानियॉ हम सभी ने अपनी दादी-नानी से सुनी होगीं, और उसमें बताई गयी बाते हम सभी को याद भी है। यही विधि कहानी कथन कहलाती है। इसका सबसे बड़ा महत्व यह है कि यदि शिक्षण का स्थायी प्रभाव डालना हो तो शिक्षण को कल्पना द्वारा, आकर्षण तरीके से कथा का रूप देकर प्रस्तुत किया जाये तो बच्चे जल्दी सीखेंगे। कक्षागत अनुशासन भी बना रहेगा और उनमें जिज्ञासा होगी। यह विधि मुख्यतः मौखिक ही होती है।

7. निरीक्षण एवं अवलोकन विधि

यह तथ्य पूरी तरह स्थापित हे कि देखी हुई घटना, वस्तु भूलती नहीं है। इसका प्रभाव हमारे मस्तिष्क पर स्थायी होता है। शिक्षण करते समय यदि छात्र को पाठ्य विषय में शामिल वस्तुओं, घटनाओं के अवलोकन एवं निरीक्षण का अवसर दिया जाये तो शिक्षण अधिगम प्रभावशाली होगा। वास्तव में किसी वस्तु, स्थान, कार्य का ध्यानपूर्वक निरीक्षण करना ही अवलोकन है। सभी विषयों में विशेषकर विज्ञान, कृषि तथा समाज विज्ञान के लिए यह अधिक उपयोगी है। समझना-परखना ही इस विधि का मूल तत्व है। समूह शिक्षण एवं उच्च स्तरों पर शोध कार्यों में इस विधि का प्रयोग प्रभावी होता है।

8. उदाहरण विधि

किसी कठिन और गूढ़ तथ्य, घटना, वस्तु को, सामग्री प्रसंगों, अनुभवों के प्रयोग द्वारा व्यक्त करना उदाहरण है। जैसे सरदार भगत सिंह की वीरता, साहस, बलिदान का उदाहरण देकर बच्चों में राष्ट्रीय भावना का विकास किया जा सकता है।

9. खेल विधि

खेल एक स्वभाविक प्रक्रिया है, इसी के द्वारा बालक अपने को मूल रूप में व्यक्त करता है। खेल-खेल में सीखो यह कथन मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण को संकेत करता है। इस विधि ने परम्परागत शिक्षण को नवीन दिशा दी है, जिससे शिक्षण ज्यादा रूचिपूर्ण हो गया है। रायबर्न ने इसके महत्व को बताते हुए कहा भी है यह विधि बालक की रचनात्मक शक्तियों को प्रोत्साहित करती है तथा सामाजिक गुणों को विकसित करके समूह प्रवृत्ति का विकास करती है। शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक शक्तियों का विकास कर व्यक्तित्व को सन्तुलित करती हैं। खेल विधि से शिक्षण करते समय हम परिवेश मे उपलब्ध सामग्री प्रयोग करें और अभिनय को शामिल कर दें तो शिक्षण जीवन से सहसम्बन्धित होगा और रूचिकर हो जायेगा।

10. समूह चर्चा विधि

किसी विषय पर एक से अधिक लोगो द्वारा चिन्तन और वार्तालाप करने को समूह चर्चा विधि कहते हैं। इस विधि से शिक्षण करने से सुनने, समझने को कौशल विकसित होता है। यह अधिगम पर ज्यादा जो देती है। समूह में चर्चा करने से एक ओर जहॉ खुलकर अभिव्यक्ति का अवसर प्राप्त होता है वहीं दूसरी ओर विषय भी स्पष्ट होता चलता है। इस विधि में शिक्षक शिक्षार्थी दोनों को समान रूप से सहभागिता एवं सक्रियता रहती है। कक्षागत अनुशासन बना रहता है और तर्क आदि मानसिक संक्रियाओं का बारम्बार अभ्यास भी हो जाता है।

11. प्रयोगात्मक विधि

नाम से ही स्पष्ट है जिस विधि में प्रयोग करके सिखाया जाये वह शिक्षण की प्रयोगात्मक विधि कहलाती है। इस विधि का आधार वैज्ञानिकता एवं तार्किकता है। प्रयोग द्वारा शिक्षण करने से छात्र सक्रिय एवं एकाग्र रहते हैं और स्वयं करके सीखने को अवसर होने से अधिगम स्थायी होता है। इस विधि में बालक की समस्त इन्द्रियॉ सक्रिय होती हैं इसलिए सीखना सरल व सहज होता है।

12. वाद विवाद विधि

महिलाओं की व्यवसाय में आवश्यकता इस विषय पर एक पक्ष है महिलाओं का व्यवसाय करना जरूरी है दूसरा पक्ष नहीं जरूरी है जब किसी विषय पर चर्चा के लिए दो पक्ष होते हैं अनके अलग अलग मत होते हैं और दोनों की चर्चा के बाद निष्कर्ष निकाला जाता है। इसी विधि को वाद विवाद विधि कहते है।

13. कार्यशाला विधि

कार्यशाला विधि वह विधि है जिसमें छात्र वास्तविक रूप से सक्रिय रहकर कार्य करते हुए अपने व समूह के सदस्यों के अनुभवों के पारस्परिक आदान प्रदान के द्वारा किसी विषय की जानकारी प्राप्त करता है। चूँकि छात्र इसमें सक्रिय प्रतिभाग करता है अतः प्राप्त ज्ञान स्थायी, विश्वसनीय व उपयोगी होता है। इस विधि का प्रयोग छात्रों के क्रियात्मक पक्ष के विकास के लिए किया जाता है। इसमें प्रायोगिक कार्य द्वारा ज्ञानार्जन को अधिक महत्व दिया जाता है।

14. भ्रमण विधि

छात्रों व बालकों की यह मनोवृत्ति होती है कि वे समूह मे रहना, समूह में खेलना तथा अपनी अधिकतम क्रियाओं को समूह में करना चाहते हैं तथा उनका अधिगम भी समूह में उत्तम प्रकार का देखा है क्योंकि छात्र जब समूह के साथ करके सीखता है तो वह अधिक स्थायी होता है। इसके साथ ही छात्र पर्यटन के माध्यम से वस्तुओं का साक्षात् निरीक्षण करने का अवसर प्राप्त होता है। इस युक्ति से छात्र वस्तु की आकृति या वातावरण की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेता हैं, क्योंकि बालकों को घूमना फिरना पसन्द होता है और हॅसते-हॅसते, घूमते फिरते पर्यटन युक्ति के माध्यम से आवश्यक जानकारी प्राप्त कर लेते हैं।

15. समस्या समाधान विधि

समस्या समाधान लक्ष्य या उद्देश्य के प्रति सुनिश्चित हैं, परन्तु इसे प्राप्त करने के तरीकों के बारे में सुनिश्चित नहीं उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सबसे उपयुक्त तरीका ढूंढना है। बच्चे भी अपने दैनिक जीवन की कई समस्याओं का समाधान उसी तरीके से करते हैं जैसे हम करते हैं। वे समस्या का समाधान करके सीख सकते है।

16. मानसिक उद्देलन

इस व्यूह रचना का प्रारम्भ ए.एफ. ऑक्सबोर्न ने किया था। किसी विशेष परिस्थिति या समस्या समाधान के लिए इस विचार जानने का प्रयास किया जाता है। इसके द्वारा किसी समूह के सदस्यों के विचार जानने का प्रयास किया जाता है। इस व्यूह रचना का प्रयोग का प्रयोग उच्च संज्ञानात्मक योग्यताओं के विकास एवं सृजनात्मक क्षमताओं की वृद्धि के लिए किया जाता है।

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