भाषा अधिगम और अर्जन यह स्पष्ट करता है कि बच्चे किस प्रकार भाषा को सीखते हैं और वह किस प्रकार उनके व्यक्तित्व, सामाजिक स्थिति व उनके आचार-विचार को प्रभावित करती है। भाषा अधिगम और अर्जन से यह भी स्पष्ट होता है कि बच्चों में भाषायी विकास किस अवस्था में कितना होता है, अधिगम और अर्जन कौन-कौन से कारको से प्रभावित होता है। भाषा अर्जन जीवनपर्यनत चलने वाली प्रक्रिया है, जिसे व्यक्ति अपने परिवेश का अनुकरण करके उसमें निरन्तर दक्षता प्राप्त करता चला जाता है, जबकि भाषा अधिगम भाषा सीखने की एक प्रयासपूर्ण प्रकिया हैं।
भाषा अधिगम
अधिगम का अर्थ होता है सीखना। सीखना हम उस अनुभव को कहते हैं जिसके द्वारा हमारे व्यवहार में परिवर्तन होता है तथा हमारे व्यवहार को नई दिशा मिलती है। भाषा अधिगम के लिए विशेष तैयारियों की जरूरत पड़ती है। ज्यादा से ज्यादा सीखने पर जोर दिया जाता है। अधिगम एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन पर्यत्न चलती रहती है और जिसके द्वारा हम ज्ञान अर्जित करते हैं। मनुष्य अपने विचारों को अभिव्यक्ति करने और समाज के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए जिस प्रकिृया द्वारा अपनी भाषिक क्षमता का विकास करता है, वह भाषा अधिगम कहलाती है। यह एक चेतन प्रकिृया है, जिसका प्रयोग द्वितीय एवं तृतीय भाषा को सीखने में किया जाता है।
भाषा अर्जन
भाषा का अर्जन अनुकरण द्वारा होता है। बालक अपने वातावरण में जिस प्रकार लोगों को बोलते हुए सुनता है लिखते हुए देखता है उसे ही अनुकरण द्वारा सीखने का प्रयास करता है। भाषा अर्जन के लिए विशेष तैयारियों की जरूरत नहीं होती केवल बातचीत के माध्यम से ही बच्चा आसानी से अपनी भाषा अर्जित कर सकता है। भाषा अर्जन, भाषा सीखने की एक सहज प्रकिृया है, जिसमें बच्चा अपने आस-पास के परिवेश में दूसरों का अनुकरण करके भाषा को सीखता है।बच्चा अपने वातावरण में जिस प्रकार लोगों को बोलते हुए सुनता है, लिखते हुए देखता है,उस ही अनुकरण द्वारा सीखने का प्रयास करता है। बच्चे का यही गुण उसकी भाषायी क्षमता का निर्माण करता है।
अधिगम और अर्जन में भाषा की भूमिका
बालक के विकास के विभिन्न आयाम होते हैं। भाषा अधिगम और अर्जन का विकास भी उन्हीं आयामों में से एक है। भाषा को अन्य कौशलों की तरह अर्जित किया जाता है। यह अर्जन बालक के जन्म के बाद ही प्रारम्भ हो जाता है। अनुकरण, वातावरण के साथ अनुक्रिया तथा शारीरिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक आवष्यकताओं की पूर्ति की मांग इसमें विशेष भूमिका निभाती है
भाषा अधिगम और अर्जन में अंतर
भाषा अर्जन जीवनपर्यनत चलने वाली प्रक्रिया है, जिसे व्यक्ति अपने परिवेश का अनुकरण करके उसमें निरन्तर दक्षता प्राप्त करता चला जाता है, जबकि भाषा अधिगम भाषा सीखने की एक प्रयासपूर्ण प्रकिया हैं। मनुष्य अपने विचारों को अभिव्यक्ति करने और समाज के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए जिस प्रकिृया द्वारा अपनी भाषिक क्षमता का विकास करता है, वह भाषा अधिगम कहलाती है। यह एक चेतन प्रकिृया है, जिसका प्रयोग द्वितीय एवं तृतीय भाषा को सीखने में किया जाता है।
बच्चों की अभिवृद्धि अर्थात मन:स्थिति और अभिप्रेरणा अर्थात भाषा को सीखने के प्रति उनकी रूचि भी द्वितीय या तृतीय भाषा को सीखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भाषा अर्जन, भाषा सीखने की एक सहज प्रकिृया है, जिसमें बच्चा अपने आस-पास के परिवेश में दूसरों का अनुकरण करके भाषा को सीखता है। बच्चा अपने वातावरण में जिस प्रकार लोगों को बोलते हुए सुनता है, लिखते हुए देखता है,उस ही अनुकरण द्वारा सीखने का प्रयास करता है। बच्चे का यही गुण उसकी भाषायी क्षमता का निर्माण करता है।
अधिगम और अर्जन के सन्दर्भ में विभिन्न विद्वानों के विचार
यह बात रहस्य ही बनी हुई है कि आखिर अत्यन्त कम उम्र के बावजूद बच्चा जटिल भाषिक व्यवस्था को कैसे समझ लेता है। कई बच्चे तीन या चार वर्ष के होते-होते न केवल एक,अपितु दो या तीन भाषाओं का धीरे-धीरे प्रवाह में प्रयोग करना सीख जाते हैं, यही नहीं, वे दिए गए सन्दर्भ में भी उपर्युक्त भाषा का प्रयोग करते हैं। अधिगम और अर्जन के सन्दर्भ में व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिकों पावलॉव, स्किनर इत्यादि का मत है कि अभ्यास, नकल व रटने से भाषा प्रयोग की क्षमता विकसित होती है। वे बच्चों के दिमाग को कोरी स्लेट मानते थे। इसके विपरीत संज्ञानात्मक रूख रखने वालों चॉम्स्की आदि के लिए भाषा मानव दिमाग में पहले से ही विद्यमान थी।
चॉम्स्की के अनुसार
भाषा अधिगम और अर्जन सीखे जाने के क्रम में वैज्ञानिक खोज भी साथ-साथ चलती रहती हैं। चॉम्स्की (1959) ने अपने ‘रिव्यू ऑफ स्किनर्स वर्बल बिहेवियर’ द्वारा अपने मत को स्पष्ट करते हुए कहा कि बच्चों में भाषाई क्षमता जन्मजात होती है और इसके अभाव में भाषिक व्यवस्था को सीखने की प्रवृत्ति सम्भव नहीं हो सकती।
जीन पियाजे के अनुसार
भाषा अधिगम और अर्जन अन्य संज्ञानात्मक तन्त्रों की भॉति परिवेश के साथ अन्त:क्रिया के माध्यम से ही विकसित होती है। उनका मानना था कि सभी बच्चे संज्ञानात्मक विकास के पूर्व आपरेशनल, कन्वर्ट आपरेशनल और फॉर्मल आपरेशनल चरणों से गुजरते हैं। जिसमें बच्चा आत्मसातीकरण और समायोजन के माध्यम से कई रूपरेखाएं बनाता जाता है। इस धारणा ने सम्पूर्ण शिक्षाशास्त्रीय विमर्स पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला।
वाइगोत्स्की के अनुसार
बच्चे की भाषा अधिगम और अर्जन समाज के साथ सम्पर्क का ही परिणाम है, साथ ही बच्चा अपनी भाषा के विकास के दौरान दो प्रकार की बोली बोलता है अपनी आत्मकेन्द्रित और दूसरी सामाजिक। आत्मोन्मुख भाषा के माध्यम से बालक स्वंय से संवाद करता है, जबकि सामाजिक भाषा के माध्यम से वह सारी दुनिया से संवाद स्थापित करता है।
अधिगम और अर्जन को प्रभावित करने वाले कारक
विद्यार्थी के भाषा अधिगम और अर्जन को विभिन्न सामाजिक व व्यक्तिगत परिस्थितियॉं प्रभावित करती हैं, जिनका वर्णन निम्नलिखित हैं।
1.सामाजिक परिवेश
मनोवैज्ञानिक वाइगोत्स्की का मत है कि व्यक्ति की भाषा उसके समाज के साथ सम्पर्क का परिणाम होती है। समाज में जैसी भाषा का प्रयोग किया जाता है, व्यक्ति की भाषा उसी के अनुरूप निर्मित होती है। यदि समाज में अशुद्ध व असभ्य भाषा का प्रयोग होगा, तो व्यक्ति की भाषा पर उसके परिवेश का प्रभाव स्पष्टतः दिखाई पड़ता है।
2.दैनिक जीवन के अनुभव
मनोवैानिकों ने अपने अनुसन्धानों से प्राप्त जानकारी के आधार पर स्पष्ट किया है कि बालक उन विषय-वस्तुओं को शीघ्र सीख और समझ लेता है, जिनसे दैनिक जीवन में उसका सम्बन्ध होता है। यह विचार इस मत पुष्टि करता है कि यदि भाषा का सम्बन्ध विद्यार्थी के दैनिक जीवन के अनुभवों से जोड़ दिया जाए, तो भाषा अधिगम की प्रकिृया सरल और त्वरित बनाई जा सकती है।
3.भाषार्जन की इच्छा
व्यक्ति अपनी प्रथम भाषा अर्थात् मातृभाषा को तो सहज रूप में सीख लेता है, किन्तु द्वितीय भाषा सीखने के प्रति इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है।
4.शारीरिक कारक
आयु, शारीरिक स्वास्थ्य, थकान, विकलांगता आदि शारीरिक अवस्था से सम्बन्धित अनेक बिन्दु अधिगम को कम या अधिक स्तर पर प्रभावित करते हैं।
5.मनोवैज्ञानिक कारक
बुद्धि स्तर के अनुरूप ही अधिगम स्तर का कम या ज्यादा होना, किसी कार्य को करने के प्रति रूचि या अरूचि होना, अभिवृत्ति, अभिक्षमता इत्यादि मनोवैज्ञानिक कारक भी बच्चों के भाषायी अधिगम को प्रभावित करते हैं।
बालकों में भाषा का विकास
बालक के विकास के विभिन्न आयाम होते हैं। भाषा अधिगम और अर्जन का विकास भी उन्हीं आयामों में से एक है। भाषा को अन्य कौशलों की तरह अर्जित किया जाता है । यह अर्जन बालक के जन्म के बाद ही प्रारम्भ हो जाता है। अनुकरण, वातावरण के साथ अनुक्रिया तथा शारीरिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक आवष्यकताओं की पूर्ति की मांग इसमें विशेष भूमिका निभाती है।
भाषा विकास की प्रारम्भिक अवस्था
सबसे पहले चरण के रूप में बालक जन्म लेते ही रोने और चिल्लाने की चेष्टाएँ करता है। रोने-चिल्लाने की चेष्टाओं के साथ ही वह अन्य ध्वनि या आवाजें भी निकालने लगता है। ये ध्वनियॉ पूर्णत: स्वाभाविक, स्वचालित एवं नैसर्गिक होती हैं, इन्हें सीखा नहीं जाता।
उपरोक्त क्रियाओं के बाद बालकों में बड़बड़ाने की क्रियाएं तथा चेष्टाएँ शुरू हो जाती हैं। इस बड़बड़ाने के माध्यम से बालक स्वर तथा व्यंजन ध्वनियों के अभ्यास का अवसर पाते हैं। वे जो कुछ भी दूसरों से सुनते हैं तथा जैसा उनकी समझ में आता है, उसी रूप में वे उन्हीं ध्वनियों को किसी-न-किसी रूप में दोहराते हैं। उनके द्वारा स्वरों; जैसे-अ,ई,उ,ऐ इत्यादि को व्यंजनों त,म,न,क इत्यादि से पहले उच्चारित किया जाता है।
भाषा विकास की वास्तविक अवस्था
प्रारम्भिक अवस्था को भाषा सीखने के लिए तैयारी की अवस्था कहा जा सकता है। इस अवस्था से गुजरने के बाद बालकों में वास्तविक भाषा विकास की वास्तविक अवस्था कहा जा सकता है। यह अवस्था बालक के एक वर्ष का हो जाने अथवा उससे एक-दो माह पहले ही शुरू हो जाती है।
पहले बालक में मौखिक अभिव्यक्ति के रूप में भाषा का विकास होता है। वह शब्दों में, वाक्यों तथा इनसे बनी भाषा को बोलना तथा समझना सीखता है, उसके मौखिक शब्द भण्डार में वृद्धि होती है तथा उसमें मौखिक अभिव्यक्ति के विभिन्न साधनों पर अधिकार पाने की योग्यताओं और कुषलताओं में वृद्धि होती रहती है। विद्यालय में प्रवेश करने तथा लिखित भाषा की शिक्षा ग्रहण करने के फलस्वरूप उसमें पढ़ने-लिखने से सम्बन्धी कुषलताओं का विकास भी प्रारम्भ हो जाता है।
बालकों में शब्द भण्डार का विकास
बालक की भाषा के विकास में उस भाषा से सम्बन्धित शब्द तथा उनके भण्डार का बड़ा-ही महत्वपूर्ण योगदान होता है। शब्दों में से ही आगे जाकर वाक्य बनते हैं और वाक्यों से भाषा के उस रूप का निर्माण होता है, जिसे विचार तथ भावों के सम्प्रेषण और विनिमय के उपयोग में लाया जाता है। मनोवैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों के आधार पर जो ऑंकड़े प्रस्तुत किए उनके आधार पर बनी निम्नलिखित सारणी से विभिन्न अवस्था में बालकों के शब्द भण्डार में धीरे-धीरे होने वाली वृद्धि का पता चलता है।
बालकों के शब्दकोष में पहले वे शब्द आते हैं, जो उसकी शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा करें तथा बाद में वे आते हैं, जो उसकी तात्कालिक मनोवैज्ञानिक आवष्यकताओं को पूरा करें। इन शब्दों में का दायरा पहले मॉ-बाप तथा परिवार के वातावरण तक ही सीमित रहता है। बाद में बालक जैसे-जैसे बड़ा होता है तथा अन्य लोगों के सम्पर्क में आता है, विद्यालय जाना शुरू करता है तथा अन्य शैक्षिक एवं सामाजिक क्रियाओं में भाग लेता है उसका यह शब्द भण्डार अपने और अपने परिवार तक ही सीमित न रहकर अत्यधिक विस्तृत होता चला जाता है।
भाषा अधिगम और अर्जन प्रश्नोत्तर
Q.1-सामाजिक अन्तः क्रिया से भाषा सीखने का समर्थन…….ने किया है।
1. वाइगोत्स्की
2. चॉम्स्की
3. स्किनर
4. पियाजे
Ans-1. वाइगोत्स्की
Q.2. स्किनर के अनुसार
1. भाषा सीखना एक अत्यन्त जटिल प्रक्रिया है।
2. भाषा अनुकरण के द्वारा सीखी जाती है।
3. भाषा परिवेश से सीखी जाती है।
4. भाषा अन्तः क्रिया से सीखी जाती है।
Ans- 2. भाषा अनुकरण के द्वारा सीखी जाती है।
Q.3. भाषा अर्जन क्षमता किसके साथ सम्बन्धित है
1. पियाजे
2. चॉमस्की
3. स्किनर
4. ब्रूनर
Ans-2. चॉमस्की
Q.4. बच्चों में भाषा सीखने की क्षमता
1. जन्मजात होती है
2. अर्जित की जाती है
3. अनुकरणीय होती है
4. बिल्कुल भी नहीं होती
Ans-1. जन्मजात होती है
Q.5. बच्चों के भाषा सीखने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
1. सुन्दर लिखना
2. मानक वर्तनी
3. शुद्ध उच्चारण
4. बातचीत करना
Ans- 4. बातचीत करना
Q.6. बच्चे सामाजिक अन्तः क्रिया से भाषा सीखते हैं। यह विचार किसका है?
1. पैवलॉव
2. वाइगोत्स्की
3. जीन पियाजे
4. स्किनर
Ans- 2. वाइगोत्स्की
Q.7. भाषा सीखने के सन्दर्भ में कौन-सा कथन सही है?
1. बच्चे विभिन्न संचार माध्यमों से ही भाषा खींचते है
2. बच्चों में भाषा अर्जित करने की जन्मजात क्षमता होती है
3. बच्चों में भाषा अर्जित करने की जन्मजात क्षमता नहीं होती
4. बच्चे विद्यालय आकर ही भाषा सीखते हैं
Ans-2. बच्चों में भाषा अर्जित करने की जन्मजात क्षमता होती है
Q.8.भाषा अधिगम और अर्जन करने में अन्तर का मुख्य आधार है
1. भाषा की जटिल संरचनाए
2. भाषा की पाठ्य- पुस्तकें
3. भाषा की लिखित आकलन
4. भाषा का उपलब्ध परिवेश
Ans- 4. भाषा का उपलब्ध परिवेश