कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत, बाल विकास के चरण

लारेन्स कोहलबर्ग (1927-1987) एक अमेरिकन मनोवैज्ञानिक थे। उन्होंने 07 से 16 वर्ष तक के बालकों से लिए साक्षात्कार से प्राप्त तथ्यों का विश्लेषण करके पाया कि बालक का विकास कुछ निश्चित अवस्थाओं में होता है, जो अवस्थाएं सार्वभौमिक होती हैं। कोहलबर्ग अपने प्रयोगों में लघु कथाओं को उपस्थित कर उससे सम्बन्धित नैतिक समस्याओं के सम्बन्ध में प्रश्न पूछते थे।

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कोहलबर्ग द्वारा पूछे जाने वाली एक लघु कथा

“यूरोप में एक महिला मौत के कगार पर थी। डाक्टरों ने कहा कि एक दवाई है, जिससे शायद उसकी जान बच जाए। वो एक तरह का रेडियम था जिसकी खोज उस शहर के एक फॉर्मासिस्ट ने तभी की थी। दवाई बनाने का खर्चा बहुत था और दवाई वाला दवाई बनाने के खर्च से दस गुना ज्यादा पैसे मॉग रहा था।

उस औरत का इलाज करवाने के लिए उसका पति हाइनज उन सबके पास गया जिसे वह जानता था। उसे केवल कुछ पैसे ही उधार मिले जोकि दवाई के दाम से आधे ही थे। उसने दवाई वाले से कहा कि उसकी पत्नी मरने वाली है, वो उस दवाई को सस्ते में दे। वह उसके बाकी पैसे बाद में दे देगा। फिर भी दवाई वाले ने मना का दिया। दवाई वाले ने कहा कि मैंने यह दवाई खोजी है, मैं इसे बेच कर पैसे कमाउॅगा। तब हाइजन ने मजबूर होकर उसकी दुकान तोड़ का वो दवाई अपनी पत्नी के लिए चुरा ली। इस कहानी के आधार पर कोल्हबर्ग ने दो बातों पर बल दिया।

1. नैतिक दुविधा

नैतिक दुविधा एक ऐसी दुविधा है, जिसमें किसी व्यक्ति का दो या दो से अधिक नैतिक कार्यों में से किसी एक कार्य का चयन करना पड़ता है, जैसे-

  1. क्या हाइनज को दवा चुरानी चाहिए थी!
  2. क्या एक पति को अपनी पत्नी की जान बचाने के लिए दवाइयॉ चुरानी चाहिए!

2. नैतिक तर्कणा

सही या गलत के प्रश्न के बारे में निर्णय लेने में शामिल चिन्तन की प्रक्रिया को नैतिक तर्कणा कहा जाता है, जैसे-

  1. हाइनज ने चोरी करके सही किया कि गलत!
  2. क्या चोरी करना सही!

इन्हीं कथाओं से प्राप्त अनुक्रियाओं का विश्लेषण करके लारेन्स कोलबर्ग ने बताया कि व्यक्ति में नैतिक विकास तीन स्तरों से होकर गुजरता है। प्रत्येक स्तर की दो-दो अवस्थाएं होती हैं तथा इन अवस्थाओं का क्रम निश्चित होता है। सभी व्यक्तियों में ये अवस्थाएं एक ही उम्र में नहीं होती हैं और ना ही व्यक्ति एक अवस्था को छोड़कर दूसरी अवस्था में जा सकता है।

कोहलबर्ग के अनुसार नैतिक विकास स्तर

कोहलबर्ग का सिद्धांत द्वारा नैतिक विकास पर उल्लेखित तीनों स्तरों तथा उनमें सम्मिलित प्रत्येक अवस्था का वर्णन निम्नवत् है

1. पूर्व परम्परागत स्तर (7 से 10 वर्ष)

इस आयु में बालक अपनी आवश्यकताओं के सम्बन्ध में सोचते हैं। नैतिक दुविधाओं से सम्बन्धित प्रश्न उनके लाभ या हानि पर आधारित होते हैं। नैतिक कार्य का सम्बन्ध सामाजिक एवं सांस्कृतिक रूप से क्या सही है एवं क्या गलत है इससे सम्बन्धित होता है। यथा-अच्छा या बुरा, सही या गलत की व्याख्या, मिलने वाले दण्ड, पुरस्कार अथवा नियमों का समर्थन करने वाले व्यक्तियों की शारीरिक क्षमता या उसके परिणाम से मापी जाती है। इसके अन्तर्गत दो चरण हैं।

A. दण्ड तथा आज्ञापालन अभिमुखता

बालकों के मन में आज्ञापालन का भाव दण्ड पर आधारित होता है, इस अवस्था में बालकों में नैतिकता का ज्ञान होता है। बालक स्वयं का परेशानियों से बचाना चाहता है। कोल्हबर्ग का मानना है कि कोई बालक यदि व्यवहार अपनाता है तो इसका कारण दण्ड से स्वयं को बचना है।

B. आत्म अभिरूचि तथा प्रतिफल अभिमुखता

इस अवस्था में बालकों का व्यवहार खुलकर सामने नहीं आता है, वह अपनी रूचि को प्राथमिकता देता है। वह पुस्कार पाने के लिए नियमों का अनुपालन करता है।

2. परम्परागत नैतिक स्तर (10 से 13 वर्ष स्तर)

यह कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत का दूसरा स्तर है। इस स्तर की अवधि 10 से 13 वर्ष के मध्य की होती है। इस स्तर पर बालक दूसरों के मानकों को स्वयं में आन्तरीकृत कर लेता है तथा उन मानकों के अनुसार सही अथवा गलत का निर्णय करता है। इस स्तर पर बालक समझता है कि वे समस्त क्रियाएं सही हैं जिनसे दूसरों की मदद होती है। इस स्तर के अन्तर्गत आने वाली अवस्थाएं निम्नवत् हैं।

A. अधिकार संरक्षण अभिमुखता

इस अवस्था में बच्चे नियम एवं व्यवस्था के प्रति जागरूक होते हैं तथा वे नियम एवं व्यवस्था के अनुपालन के प्रति जवाबदेह होते हैं।

B. अच्छा लड़का या अच्छी लड़की

इस अवस्था में बच्चे में एक-दूसरे का सम्मान करने की भावना होती है तथा दूसरों से भी सम्मान पाने की इच्छा रखते हैं।

3. उत्तर परम्परागत नैतिक स्तर (13 वर्ष से अधिक) 

कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत के मतानुसार नैतिक विकास के परम्परागत स्तर पर नैतिक मूल्य या चारित्रिक मूल्य का सम्बन्ध अच्छे या बुरे कार्य के सन्दर्भ में निहित होता है। बालक बाहरी सामाजिक आशाओं को पूरा करने में रूचि लेता है। बालक अपने परिवार, समाज एवं राष्ट्र के महत्व को प्राथमिकता देते हुए एक स्वीकृत व्यवस्था के अन्तर्गत कार्य करता है। इसके अन्तर्गत दो चरण हैं।

A. सामाजिक अनुबन्ध अभिमुखता

इस अवस्था में बच्चे वही करते है, जो उन्हें सही लगता है तथा वे यह भी सोचते हैं कि स्थापित नियमों में सुधार की आवश्यकता तो नहीं हैं।

B. सार्वभौमिक नैतिक सिद्धान्त अभिमुखता

इस अवस्था में अन्त: करण की ओर अग्रसर हो जाती है। अब बच्चे का आचरण दूसरे की प्रतिक्रियाओं का विचार किए बिना उसके आन्तरिक आदर्श के द्वारा होता है।

कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत MCQ

Question.1- कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत के अनुसार, “किसी कार्य को इसलिए करना, क्योंकि दूसरे इसे स्वीकृति देते हैं”, नैतिक विकास के…………चरण दर्शाता है।

1. उत्तर-प्रथागत

2. अमूर्त संक्रियात्मक

3. प्रथा-पूर्व

4. प्रथागत

Ans-4. प्रथागत

Question.2- निम्नलिखित में से कौनन-सी लॉरेंस कोहलबर्ग के द्वारा प्रस्तावित नैतिक विकास की एक अवस्था है?

1. प्रसुप्ति अवस्था

2. सामाजिक अनुबन्ध अभिविन्यास

3. मूर्त संक्रियात्मक अवस्था

4. उद्योग बनाम अधीनता अवस्था

Ans-2. सामाजिक अनुबन्ध अभिविन्यास

Question.3- एक बच्चा तर्क प्रस्तुत करता है कि हिंज को दवाई की चोरी नहीं करनी चाहिए (वह दवाई जो उसकी पत्नी की जान बचाने के लिए जरूरी है), क्योंकि यदि वह ऐसा करता है, तो उसे पकड़ा जाएगा और जेल भेज दिया जाएगा। कोहलबर्ग का सिद्धांत के अनुसार, वह बच्चा नैतिक समझ की किस अवस्था के अर्न्तगत आता है?

1. सार्वभौमिक नैतिक सिद्धान्त अभिविन्यास

2. यन्त्रीय उद्देश्य अभिविन्यास

3. सामालिक-क्रम नियन्त्रक अभिविन्यास

4. दण्ड एवं आज्ञापालन अभिन्यास

Ans-4. दण्ड एवं आज्ञापालन अभिन्यास

Question.4- कोहलबर्ग का सिद्धांत के यागदान के रूप में निम्नलिखित में से किसे माना जा सकता हैं?

1. उनका विश्वास है कि बच्चे नैतिक दार्शनिक हैं

2. उनके सिद्धान्त ने संज्ञानात्मक परपिक्वता और नैतिक परिपक्वता के बीच एक सहयोग का समर्थन किया है

3. इस सिद्धान्त में विस्तृत परीक्षण प्रक्रियाएँ हैं

4. यह नैतिक तर्क और कार्यवाई के बीच एक स्पष्ट सम्बन्ध स्थापित करता है

Ans-4. यह नैतिक तर्क और कार्यवाई के बीच एक स्पष्ट सम्बन्ध स्थापित करता है

Question.5- किसी बच्चे का दिया गया विशिष्ट उत्तर कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत के नैतिक तर्क के सोपानों की विषय-वस्तु के किस सोपान के अन्तर्गत आएगा?

“यदि आप ईमानदार हैं, तो आपके माता-पिता आप पर गर्व करेंगे, इसलिए आपको ईमानदार रहना चाहिए।’’

1.सामाजिक संकुचन अनुकूलन

2.अच्छी लड़की-अच्छा लड़का अनुकूलन

3.कानून और व्यवस्था अनुकूलन

4.दण्ड-आज्ञाकारिता अनुकूलन

Ans-2. अच्छी लड़की-अच्छा लड़का अनुकूलन

Question.6- कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत के पूर्व-परम्परागत स्तर के अनुसार, कोई नैतिक निर्णय लेते समय एक व्यक्ति निम्नलिखित में से किस तरफ प्रवृत्त होगा?

1.व्यक्तिगत आवश्यकताएँ तथा इच्छाएं

2.व्यक्तिगत मूल्य

3.पारिवारिक अपेक्षाएं

4.अन्तर्निहित सम्भावित दण्ड

Ans-4. अन्तर्निहित सम्भावित दण्ड

Question.7- कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत में कौन-सा स्तर नैतिकता की अनुपस्थिति को सही अर्थ में सुचित करता है?

1. स्तर 3

2. स्तर 4

3. स्तर 1

4. स्तर 2

Ans-3. स्तर 1

कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत FAQ

कोहलबर्ग का सिद्धांत के अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न निम्नलिखित हैं

कोहलबर्ग कहां के निवासी थे

Lawrence Kohlberg लारेन्स कोलबर्ग (1927-1987) एक अमेरिकन मनोवैज्ञानिक थे।

नैतिक विकास का सिद्धांत किसने दिया

नैतिक विकास का सिद्धांत अमेरिकन मनोवैज्ञानिक लारेन्स कोलबर्ग ने दिया।

कोहलबर्ग का सिद्धांत के अनुसार नैतिक विकास के कितने स्तर हैं

कोल्हबर्ग ने बताया कि व्यक्ति में नैतिक विकास तीन स्तरों से होकर गुजरता है। प्रत्येक स्तर की दो-दो अवस्थाएं होती हैं तथा इन अवस्थाओं का क्रम निश्चित होता है। सभी व्यक्तियों में ये अवस्थाएं एक ही उम्र में नहीं होती हैं और ना ही व्यक्ति एक अवस्था को छोड़कर दूसरी अवस्था में जा सकता है।

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